लोहाघाट गढ़ और उससे जुड़ी दंत कथाएं
लोहाघाट गढ़, उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित, अपने ऐतिहासिक महत्व और अद्भुत दंतकथाओं के लिए प्रसिद्ध है। यह गढ़ प्राचीन समय में चंद वंश के शासन का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। लोहाघाट, जो आज एक छोटा और शांत कस्बा है, कभी अपनी सामरिक स्थिति और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता था। इस क्षेत्र से जुड़ी कई कहानियां और लोककथाएं पीढ़ियों से सुनाई जाती रही हैं।
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लोहाघाट गढ़ का इतिहास
चंद वंश का प्रभाव: चंद वंश, जिसने 10वीं से 18वीं शताब्दी तक कुमाऊं क्षेत्र पर शासन किया, ने लोहाघाट को अपनी राजधानी के एक प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित किया।
सैन्य महत्व: यह गढ़ काली नदी और अन्य घाटियों के पास स्थित था, जो इसे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाता था।
धार्मिक केंद्र: लोहाघाट के आसपास कई प्राचीन मंदिर और धार्मिक स्थल हैं, जो इसे आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण बनाते हैं।
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लोहाघाट गढ़ से जुड़ी प्रमुख दंतकथाएं
1. देवी वाराही का आशीर्वाद
लोककथाओं के अनुसार, लोहाघाट गढ़ के शासक देवी वाराही के बड़े भक्त थे। कहा जाता है कि देवी वाराही, जिन्हें स्थानीय लोग "माँ बारी देवी" कहते हैं, गढ़ के पास एक गुफा में वास करती थीं।
एक बार, पड़ोसी राज्य के राजा ने गढ़ पर हमला करने की योजना बनाई। लोहाघाट के राजा ने देवी से सहायता मांगी। देवी ने स्वप्न में आकर राजा को युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद दिया और कहा, "जब तक तुम्हारी भक्ति सच्ची है, कोई भी शत्रु इस गढ़ को पराजित नहीं कर सकता।"
युद्ध के दौरान, देवी ने एक विशाल सूअर (वाराही रूप) का रूप धारण किया और शत्रु सेना को भयभीत कर उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया। यह गढ़ देवी वाराही के चमत्कार और आशीर्वाद का प्रमाण माना जाता है।
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2. लोहाघाट गढ़ और काली नदी का श्राप
एक अन्य दंतकथा के अनुसार, लोहाघाट गढ़ के पास स्थित काली नदी कभी शुद्ध जल का स्रोत थी। किंवदंती है कि गढ़ के एक शासक ने नदी के पवित्र जल का उपयोग सेना के अभ्यास के दौरान किया। इससे स्थानीय संतों और साधुओं को अपमानित महसूस हुआ।
एक संत ने गढ़ के राजा को चेतावनी दी कि यदि वह नदी के जल का सम्मान नहीं करेगा, तो नदी और गढ़ दोनों का विनाश हो जाएगा। राजा ने इस चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया। कहा जाता है कि इसके बाद नदी का जल धीरे-धीरे अशुद्ध हो गया और गढ़ की शक्ति और समृद्धि भी कम हो गई।
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3. लोहाघाट गढ़ और प्रेतों का वास
लोहाघाट गढ़ से जुड़ी एक रहस्यमय दंतकथा बताती है कि गढ़ के पास स्थित एक स्थान जिसे आज "अभयारण्य श्मशान घाट" कहते हैं, प्रेत-आत्माओं का निवास स्थान था। यह माना जाता है कि गढ़ के राजा ने एक बार श्मशान के पास एक मंदिर बनाने का आदेश दिया था।
स्थानीय पंडितों ने राजा को चेतावनी दी कि इस स्थान को छेड़ने से प्रेतात्माएं नाराज हो जाएंगी। राजा ने उनकी बात नहीं मानी, और मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया। निर्माण कार्य के दौरान कई दुर्घटनाएं हुईं, और अंततः राजा ने उस स्थान को छोड़ने का निर्णय लिया। आज भी लोग मानते हैं कि उस क्षेत्र में रात्रि के समय अजीब घटनाएं होती हैं।
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4. "लोहे का पत्थर" और गढ़ की शक्ति
लोककथा के अनुसार, लोहाघाट गढ़ का नाम वहां पाए जाने वाले एक विशेष लोहे के पत्थर से पड़ा। यह पत्थर गढ़ के मुख्य द्वार के पास स्थापित था और इसे गढ़ की शक्ति का प्रतीक माना जाता था।
कहा जाता है कि यह पत्थर तब तक अडिग रहा, जब तक गढ़ के शासक धर्म और न्याय के मार्ग पर थे। लेकिन जब शासकों ने अन्याय करना शुरू किया, तो यह पत्थर अचानक अपने स्थान से हट गया। इसके बाद गढ़ पर आक्रमण हुआ और इसका पतन हो गया।
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लोहाघाट गढ़ का सांस्कृतिक महत्व
वाराही देवी मंदिर: लोहाघाट गढ़ के पास स्थित यह मंदिर आज भी स्थानीय लोगों के लिए श्रद्धा का केंद्र है।
लोककथाएं और त्योहार: वाराही देवी और अन्य स्थानीय देवताओं से जुड़ी कथाएं लोहाघाट के त्योहारों और लोकगीतों में जीवंत हैं।
पर्यटन: लोहाघाट गढ़ और इसके आसपास के स्थल, जैसे मायावती आश्रम और एबट माउंट, आज पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।
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निष्कर्ष
लोहाघाट गढ़ उत्तराखंड की समृद्ध सां
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