कालसी गढ़ और उससे जुड़ी दंत कथाएं

कालसी गढ़, उत्तराखंड के वर्तमान देहरादून जिले में स्थित है और यह ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यमुना और टोंस नदी के संगम पर स्थित इस गढ़ का संबंध प्राचीन काल से है और यह क्षेत्र अशोक के शिलालेखों, स्थानीय किंवदंतियों और दंतकथाओं के लिए प्रसिद्ध है।

कालसी गढ़ का ऐतिहासिक महत्व

कालसी गढ़ का निर्माण पहाड़ी राजाओं द्वारा किया गया था और इसे एक सैन्य और प्रशासनिक केंद्र के रूप में उपयोग किया गया।

कालसी का उल्लेख मौर्य साम्राज्य के दौरान भी मिलता है। यहां स्थित अशोक का शिलालेख यह दर्शाता है कि यह क्षेत्र मौर्य शासन के प्रभाव में था।

यह गढ़ यमुना घाटी और हिमालय के बीच व्यापार और सैन्य गतिविधियों का केंद्र था।



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कालसी गढ़ से जुड़ी प्रमुख दंतकथाएं

1. देवी दुर्गा और कालसी गढ़ की रक्षा

लोककथाओं के अनुसार, कालसी गढ़ पर एक बार एक शक्तिशाली आक्रमण हुआ। गढ़ के शासक ने अपनी प्रजा और किले की रक्षा के लिए देवी दुर्गा की आराधना की। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा ने रात के समय स्वप्न में राजा को दर्शन दिए और कहा, "तुम्हारी प्रजा की रक्षा के लिए मैं स्वयं इस गढ़ की पहरेदार बनूंगी।"
अगले दिन, जब शत्रु सेना ने आक्रमण किया, तो एक भयंकर तूफान आया जिसने शत्रु सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया। कहा जाता है कि देवी दुर्गा के इस चमत्कार से गढ़ सुरक्षित रहा और दुश्मनों को हार का सामना करना पड़ा।

2. कालसी का राजा और नाग देवता

एक और प्रसिद्ध दंतकथा नाग देवता से जुड़ी है। कहा जाता है कि कालसी गढ़ के निकट एक पवित्र नाग झील थी, जहां नाग देवता का वास था। गढ़ के राजा ने नाग देवता की पूजा करना बंद कर दिया और झील को अपने सैनिकों के लिए जल स्रोत के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
इससे क्रोधित होकर नाग देवता ने गढ़ पर अपना प्रकोप दिखाया। उन्होंने भारी बारिश और तूफान भेजा, जिससे गढ़ को भारी क्षति हुई। बाद में, राजा ने नाग देवता से माफी मांगी और झील को पवित्र स्थल घोषित कर दिया। आज भी कालसी क्षेत्र में नाग पंचमी का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

3. अशोक और कालसी गढ़ की लोककथा

मौर्य सम्राट अशोक के काल से जुड़ी एक कथा कहती है कि कालसी गढ़ के पास स्थित अशोक का शिलालेख एक विशेष स्थान पर स्थापित किया गया था। किंवदंती है कि जब इसे स्थापित किया जा रहा था, तब स्थानीय संतों और साधुओं ने इसे "पवित्र पत्थर" कहा और कहा कि इसे जिस स्थान पर रखा जाएगा, वहां सदैव शांति और समृद्धि बनी रहेगी। यह शिलालेख आज भी कालसी की ऐतिहासिक पहचान है।

4. कालसी गढ़ का पतन और श्राप

एक अन्य दंतकथा के अनुसार, कालसी गढ़ के अंतिम शासक ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने प्रजा पर अत्यधिक कर लगाए और कई अन्यायपूर्ण कार्य किए। एक संत, जो गढ़ के निकट रहते थे, ने राजा को चेतावनी दी कि यदि उसने अपने कर्म नहीं बदले, तो गढ़ का पतन हो जाएगा।
राजा ने संत की चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया। कहा जाता है कि संत ने गढ़ को श्राप दिया और कुछ ही वर्षों में गढ़ पर एक शक्तिशाली दुश्मन ने आक्रमण कर दिया, जिससे गढ़ का अंत हो गया।


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कालसी गढ़ का सांस्कृतिक महत्व

अशोक का शिलालेख: यह क्षेत्र मौर्य साम्राज्य और बौद्ध धर्म के प्रसार का प्रतीक है।

देवी और नाग पूजा: गढ़ के पास स्थित मंदिर और झीलें आज भी स्थानीय लोगों की श्रद्धा का केंद्र हैं।

लोकगीत और त्योहार: कालसी गढ़ की कथाएं लोकगीतों और त्योहारों में जीवित हैं। नाग पंचमी और दुर्गा पूजा यहां विशेष महत्व रखते हैं।



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निष्कर्ष

कालसी गढ़ न केवल उत्तराखंड के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक है, बल्कि इसकी दंतकथाएं आज भी स्थानीय लोगों की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं। ये कथाएं यह दर्शाती हैं कि कैसे प्रकृति, देवी-देवता और मानव जीवन आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं। कालसी गढ़ और इससे जुड़ी दंतकथाएं उत्तराखंड की प्राचीन परंपराओं और विश्वासों को समझने का एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं।


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