भू कानून उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत पर बड़ा सवाल !

उत्तराखंड में भू कानून का मसला राज्य की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और उसकी मौलिक पहचान पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न बन गया है। उत्तराखंड के लोग अपनी भूमि, परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति गहरी आस्था और जुड़ाव रखते हैं। यहां की भूमि केवल एक संपत्ति नहीं, बल्कि उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं को संजोए हुए है।

बाहरी व्यक्तियों द्वारा जमीन की खरीद-फरोख्त और नए विकास कार्यों से पारंपरिक गाँव, रीति-रिवाज और जीवनशैली पर सीधा असर हो सकता है। इस प्रकार की गतिविधियाँ स्थानीय लोगों के निवास और आजीविका पर दबाव डालती हैं, जिससे पहाड़ी क्षेत्र के मूल निवासियों को अपने ही गांवों में दूसरी जगह बसने या पलायन करने की स्थिति में आना पड़ सकता है।

साथ ही, भू कानून का अभाव बाहरी प्रभाव को बढ़ावा देता है, जिससे स्थानीय संस्कृति के स्थान पर बाहरी संस्कृतियों का प्रभाव बढ़ सकता है। इससे न केवल स्थानीय कला, वास्तुकला, और संगीत जैसी सांस्कृतिक विरासतें खतरे में पड़ती हैं, बल्कि स्थानीय रीति-रिवाज और समुदाय की पारंपरिक पहचान भी धीरे-धीरे विलुप्त हो सकती है।

इसलिए, उत्तराखंड में भू कानून का पुनः अवलोकन और उसमें संशोधन करना आवश्यक है ताकि स्थानीय संस्कृति, परंपराओं, और पर्यावरण का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।

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