ईजीपी (EGP), जिसे "इकोलॉजी-इकॉनॉमी ग्रोथ प्लेटफ़ॉर्म" या पर्यावरण-आधारित आर्थिक वृद्धि कहा जा सकता है, उत्तराखंड जैसे राज्यों के लिए एक महत्वपूर्ण अवधारणा हो सकती है।

उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक संसाधन और पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए, ईजीपी की नींव कुछ ऐसे कदमों पर आधारित होनी चाहिए जो पर्यावरण की रक्षा करते हुए आर्थिक विकास को बढ़ावा दें।


### उत्तराखंड में EGP (इकोलॉजी-इकॉनॉमी ग्रोथ प्लेटफ़ॉर्म) के मुख्य स्तंभ


#### 1. **ग्रीन और सतत कृषि**

   - **जैविक खेती:** जैविक और टिकाऊ कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना, जो न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर है, बल्कि किसानों के लिए भी अधिक लाभकारी हो सकती है। उत्तराखंड की जैविक उपज (जैसे कि मंडुवा, झंगोरा, आलू, सेब) को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ावा देना।

   - **मूल्य वर्धित उत्पाद:** स्थानीय कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण और पैकेजिंग, जैसे हर्बल चाय, मसाले, और दालें, ताकि किसानों को बेहतर लाभ मिल सके और रोजगार के अवसर पैदा हों।


#### 2. **पारिस्थितिकी-पर्यटन (Eco-Tourism)**

   - **पर्यावरणीय पर्यटन:** उत्तराखंड के सुंदर प्राकृतिक दृश्य, वन्यजीव अभ्यारण्य और धार्मिक स्थल पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। ईजीपी के तहत, इस क्षेत्र में ऐसे पर्यटन मॉडल विकसित किए जा सकते हैं जो पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव डालते हैं, जैसे ट्रैकिंग, वन्यजीव सफारी, और सांस्कृतिक पर्यटन।

   - **स्थानीय समुदायों का जुड़ाव:** स्थानीय समुदायों को पर्यटन से जोड़कर उन्हें स्थायी आजीविका के अवसर प्रदान करना, जैसे होमस्टे, गाइड सेवाएँ, और स्थानीय हस्तशिल्प विक्रय।


#### 3. **नवीकरणीय ऊर्जा**

   - **सौर और पवन ऊर्जा:** राज्य की बिजली आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्वच्छ और हरित ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान देना। उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में सौर ऊर्जा के बड़े अवसर हैं जिन्हें प्रोत्साहित किया जा सकता है।

   - **छोटे और मिनी हाइड्रो प्रोजेक्ट्स:** छोटे जल विद्युत परियोजनाओं के माध्यम से ऊर्जा उत्पादन, जो बड़े बांधों की तुलना में कम पर्यावरणीय प्रभाव डालते हैं।


#### 4. **जैव विविधता और वनों का संरक्षण**

   - **सामुदायिक वन प्रबंधन:** स्थानीय समुदायों को वन संरक्षण के कार्यों में शामिल करना और उन्हें बांस शिल्प, मधुमक्खी पालन, औषधीय पौधों की खेती जैसे व्यवसायों के माध्यम से आर्थिक रूप से मजबूत बनाना।

   - **जैव विविधता संरक्षण:** वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रमों के साथ-साथ जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए पुनर्वनीकरण प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करना।


#### 5. **पानी के संसाधनों का संरक्षण**

   - **जल संचयन और संरक्षण:** जल संचयन, ड्रिप सिंचाई, और अन्य जल संरक्षण तकनीकों को बढ़ावा देना, जिससे कृषि और पेयजल के लिए पानी की उपलब्धता बनी रहे।

   - **नदियों और जलस्रोतों का संरक्षण:** जल प्रदूषण को रोकने के लिए प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन योजनाओं को लागू करना।


#### 6. **शिक्षा और स्थानीय कौशल का विकास**

   - **कौशल विकास कार्यक्रम:** स्थानीय युवाओं के लिए कौशल विकास कार्यक्रम, जो उन्हें सतत कृषि, पर्यटन, हस्तशिल्प, और नवीकरणीय ऊर्जा में रोजगार के अवसर प्रदान कर सके।

   - **जागरूकता अभियान:** सतत विकास और पर्यावरणीय संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान चलाना, ताकि लोग जिम्मेदार नागरिक बन सकें।


#### 7. **स्थानीय उद्योग और हस्तशिल्प को बढ़ावा देना**

   - **पारंपरिक शिल्प और कला:** पारंपरिक हस्तशिल्प जैसे बुनाई, लकड़ी के शिल्प, और अन्य स्थानीय कलाओं का पुनरुद्धार, जो न केवल आर्थिक विकास में सहायक होंगे बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित करेंगे।

   - **लघु और कुटीर उद्योग:** स्थानीय स्तर पर छोटे उद्योगों की स्थापना करना, जैसे जैविक खाद्य प्रसंस्करण, जड़ी-बूटी उत्पाद, और स्थानीय वस्त्र उद्योग।


### निष्कर्ष

ईजीपी की अवधारणा उत्तराखंड में सतत विकास का एक प्रभावी साधन बन सकती है, जो पर्यावरण और आर्थिक विकास के बीच एक सही संतुलन स्थापित कर सके। इस मॉडल के तहत, न केवल प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा होगी, बल्कि लोगों की आजीविका के लिए स्थायी और लाभकारी अवसर भी पैदा होंगे। उत्तराखंड के अनोखे भौगोलिक और सांस्कृतिक धरोहर को देखते हुए, इस तरह का विकास मॉडल राज्य की समग्र प्रगति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

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