**मीठा झूठ**
सूरज अपनी लालिमा बिखेरते हुए धीरे-धीरे पहाड़ियों के पीछे छिप रहा था। गाँव के छोटे से मकान की छत पर बैठी आर्या आसमान में बदलते रंगों को देख रही थी। उसके मन में एक अजीब सी बेचैनी थी। आज वो अपने जीवन के सबसे बड़े निर्णय का सामना कर रही थी, और उस निर्णय का आधार था—एक मीठा झूठ।
आर्या का बचपन इस छोटे से पहाड़ी गाँव में बीता था। उसके पिता, रमेश, गाँव के सबसे ईमानदार और नेक इंसान थे। उन्होंने उसे सिखाया था कि सत्य हमेशा सबसे बड़ा होता है। लेकिन आज की परिस्थिति में सत्य को अपनाना आर्या के लिए मुश्किल हो रहा था।
दो साल पहले आर्या की मुलाकात समीर से हुई थी। समीर शहर का एक अमीर और प्रतिष्ठित व्यवसायी था। उनकी मुलाकातें धीरे-धीरे दोस्ती में बदल गईं और फिर वो दोस्ती प्यार में बदल गई। समीर ने आर्या से शादी का वादा किया और उसके भविष्य के सपनों को नई उड़ान दी। लेकिन कुछ दिन पहले समीर ने उसे बताया कि उसकी शादी उसके परिवार द्वारा तय की जा चुकी है, और वह उस रिश्ते को तोड़ने की स्थिति में नहीं है। आर्या का दिल टूट गया, लेकिन समीर ने उसे कहा, "मैं तुमसे प्यार करता हूँ, पर मैं अपने परिवार को दुखी नहीं कर सकता।"
आर्या को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। गाँव में उसकी शादी की बातें हो रही थीं, और उसके माता-पिता भी उसकी शादी के लिए उत्साहित थे। लेकिन उसका दिल अभी भी समीर के प्यार में उलझा हुआ था। उसे सच बताकर अपने माता-पिता की उम्मीदें तोड़नी नहीं थी, लेकिन झूठ बोलकर वो खुद को भी धोखा नहीं देना चाहती थी।
उसने अंततः एक निर्णय लिया। उसने अपने माता-पिता से कहा, "मुझे शहर में नौकरी मिल गई है, और मैं वहाँ जाकर कुछ साल काम करना चाहती हूँ।" यह सुनकर उसके माता-पिता खुश हो गए, उन्हें लगा कि उनकी बेटी शहर में नाम कमाएगी।
असल में, आर्या ने शहर जाने का फैसला इसलिए किया ताकि वह खुद को समीर से दूर कर सके और अपनी जिंदगी को नए सिरे से शुरू कर सके। उसने झूठ तो बोला था, लेकिन वह झूठ किसी को ठेस पहुँचाने के लिए नहीं, बल्कि अपने दिल के घावों को भरने के लिए था।
शहर में उसने एक नई जिंदगी शुरू की। धीरे-धीरे वह अपने पुराने दर्द को पीछे छोड़ने लगी। उसने खुद को समझाया कि कभी-कभी मीठे झूठ भी जरूरी होते हैं, ताकि हम अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ सकें।
समय बीतता गया, और आर्या ने अपने जीवन को नए सिरे से जीना सीखा। उसके मीठे झूठ ने न केवल उसके माता-पिता को खुश रखा, बल्कि उसे भी एक नई दिशा दी।
सूरज की अंतिम किरणें जब आसमान से ओझल हो गईं, आर्या के मन का बोझ भी धीरे-धीरे हल्का हो गया। झूठ तो उसने बोला था, पर उस झूठ ने उसकी ज़िंदगी को फिर से संवारने में मदद की।
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