उत्तराखंड: क्या वास्तव में पहाड़ी गांवों में बसता है? – एक सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक अध्ययन...…
उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है, हिमालय की गोद में बसा एक सुंदर और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य है। इस राज्य की आत्मा इसके पहाड़ी गांवों में बसती है। उत्तराखंड का भूगोल, जनसंख्या वितरण, संस्कृति, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण – सब कुछ पहाड़ी गांवों से गहराई से जुड़ा है। लेकिन आधुनिक समय में बदलती परिस्थितियों ने यह सवाल उठाया है: क्या उत्तराखंड आज भी अपने पहाड़ी गांवों में वास्तव में बसता है?
1. भौगोलिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
उत्तराखंड दो प्रमुख मंडलों में बंटा है – कुमाऊं और गढ़वाल। इन दोनों क्षेत्रों में पहाड़ी और दुर्गम भूभाग अधिक हैं। सैकड़ों वर्षों से लोग यहां छोटी-छोटी बस्तियों और गांवों में रहते आ रहे हैं। इन गांवों की बसावट का आधार प्राकृतिक संसाधनों (जल स्रोत, उपजाऊ भूमि, वनों) की उपलब्धता रहा है। हर गांव में अपने देवता, परंपराएं, बोली-बानी (गढ़वाली, कुमाऊंनी) और सामाजिक तंत्र रहा है।
2. सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन
उत्तराखंड के गांव केवल निवास स्थान नहीं बल्कि संस्कृति और विरासत के केंद्र हैं। यहां की प्रमुख विशेषताएं हैं:
- साझा कृषि व्यवस्था: कई गांवों में लोग आज भी सामूहिक खेती या पारंपरिक बंटवारे के आधार पर खेती करते हैं।
- मेला, त्योहार और लोक संस्कृति: नंदा देवी मेला, बग्वाल, हरेला, फूलदेई जैसे पर्व गांवों में बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं।
- स्थानीय संगठन: महिला मंगल दल, युवा मंगल दल, पाणी पंचायत, आदि गांवों की सामाजिक रीढ़ हैं।
- पारंपरिक वास्तुकला: पत्थर और लकड़ी से बने 'काठी घर' और मंदिर गांवों की पहचान हैं।
3. वर्तमान संकट: पलायन और वीरान गांव
उत्तराखंड के सामने सबसे बड़ा सामाजिक संकट है तेजी से होता पलायन। गांवों में रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण लाखों लोग मैदानी क्षेत्रों या शहरों में जा चुके हैं।
- 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में करीब 1,000 गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं।
- युवाओं का पलायन गांवों को बूढ़ों और महिलाओं के हवाले कर रहा है, जिससे कृषि और सामाजिक जीवन दोनों प्रभावित हो रहे हैं।
- इस प्रवृत्ति ने कई गांवों को "भूतिया गांव" की उपाधि दे दी है।
4. फिर भी गांवों में है जीवन की रौनक
हालांकि कई गांव खाली हो गए हैं, फिर भी हजारों गांव आज भी जीवंत हैं:
- स्वयं सहायता समूहों और महिला नेतृत्व ने गांवों में नई चेतना लाई है।
- ईको-टूरिज्म, जैविक खेती, होमस्टे संस्कृति ने कुछ गांवों को रोजगार के नए अवसर दिए हैं।
- सरकारी योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, मनरेगा आदि ने कुछ हद तक राहत दी है।
5. समाधान और भविष्य की दिशा
यदि उत्तराखंड को जीवंत बनाए रखना है, तो गांवों में फिर से जीवन, रोजगार और सम्मानजनक जीवन शैली लौटानी होगी।
- स्थानीय उत्पादों का विपणन (जैसे मंडुवा, झंगोरा, ऊन, शहद)।
- सौर ऊर्जा, वर्षा जल संचयन, डिजिटल शिक्षा केंद्र जैसे नवाचार।
- स्थानीय युवा नेतृत्व और ग्राम स्तर पर नीति निर्माण।
- ग्राम आधारित पर्यटन, आयुर्वेदिक ग्राम, तीर्थ ग्राम और वन ग्राम मॉडल।
निष्कर्ष
उत्तराखंड केवल पहाड़ों की भूमि नहीं, बल्कि गांवों की आत्मा से सजीव है। हालांकि समय और परिस्थितियों ने इन गांवों को संकट में डाला है, फिर भी उत्तराखंड आज भी बहुत हद तक अपने पहाड़ी गांवों में ही बसता है। आवश्यकता है – नीति, नवाचार और स्थानीय नेतृत्व की ताकत से इन गांवों को पुनर्जीवित करने की।
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