बदलते मौसम में जीवन की सुरक्षा — हीट वेव्स और अकस्मात बारिश से बचाव की ज़रूरत
भारत के अधिकांश हिस्सों में अब मौसम का मिज़ाज बेहद असामान्य और अस्थिर हो गया है। एक ओर जहाँ तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जा रहा है, वहीं दूसरी ओर बिना किसी पूर्व चेतावनी के अचानक मूसलधार बारिश और ओलावृष्टि जीवन को अस्त-व्यस्त कर रही है। इस बदले हुए मौसम चक्र ने आम नागरिकों के साथ-साथ समाज के सबसे संवेदनशील वर्ग—दिव्यांगजनों—के लिए भी नई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं।
हीट वेव्स: मौन जानलेवा संकट
हीट वेव्स यानी लू अब केवल एक मौसमी परेशानी नहीं रही, यह स्वास्थ्य आपातकाल बन चुकी है। धूप में काम करने वाले श्रमिक, बुजुर्ग, बच्चे और दिव्यांगजन इसकी चपेट में सबसे पहले आते हैं। प्यास लगने से पहले शरीर पानी मांगता है, लेकिन जागरूकता के अभाव में लोग निर्जलीकरण, थकावट और हीट स्ट्रोक का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में सरकार और समाज की ज़िम्मेदारी बनती है कि न केवल सार्वजनिक स्थलों पर पानी और छायादार व्यवस्था हो, बल्कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में हीट स्ट्रोक के इलाज की विशेष तैयारी हो।
अकस्मात बारिश: शहरी अव्यवस्था का आईना
अकस्मात बारिश और जलभराव ने यह दिखा दिया है कि हमारा शहरी नियोजन कितना कमज़ोर है। सड़कों पर पानी भर जाना, नालों का जाम होना और बस्तियों में घुटनों तक पानी खड़ा होना आम दृश्य बन गया है। दिव्यांगजन, जो व्हीलचेयर या सहायक उपकरणों पर निर्भर हैं, इस स्थिति में सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। उन्हें न तो सुरक्षित निकासी मार्ग मिलते हैं, न ही आपातकालीन मदद की संरचित व्यवस्था।
दिव्यांगजन की सुरक्षा: नीतियों में संवेदनशीलता की ज़रूरत
जब हम आपदा प्रबंधन या मौसम से जुड़ी सावधानियों की बात करते हैं, तो दिव्यांगजनों की ज़रूरतें अक्सर योजनाओं से गायब होती हैं। यह एक गहरी सामाजिक चूक है। व्हीलचेयर उपयोगकर्ताओं के लिए जलभराव में चलना असंभव हो जाता है। दृष्टिबाधितों को रास्ता समझना और बहरे व्यक्तियों को चेतावनियाँ समझना कठिन हो जाता है। ऐसे में ज़रूरी है कि सरकारी चेतावनियाँ दृष्टि, श्रवण और शारीरिक रूप से बाधित नागरिकों को ध्यान में रखकर जारी हों। दिव्यांग मित्र स्वयंसेवकों की व्यवस्था की जानी चाहिए जो संकट के समय उनकी सहायता कर सकें।
समाधान: तकनीक, नीति और संवेदना का संगम
बदलते मौसम की चुनौती का सामना करने के लिए केवल अल्पकालिक इंतज़ाम काफी नहीं हैं। इसके लिए दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी जिसमें नागरिक जागरूकता, स्थायी बुनियादी ढाँचा, तकनीकी सहायता, और दिव्यांगजन समावेशिता की ठोस नीति शामिल हो। स्मार्ट सिटी तभी स्मार्ट होगी जब वह समाज के हर वर्ग की ज़रूरतों का सम्मान और समाधान करे।
निष्कर्षतः, हीट वेव्स और अकस्मात बारिश केवल जलवायु संकट नहीं हैं, ये हमारे सामाजिक ताने-बाने और सरकारी योजनाओं की परीक्षा हैं। अगर हम अब भी न चेते, तो सबसे अधिक नुकसान उन्हीं को होगा, जो पहले से ही समाज की हाशिए पर खड़े हैं—हमारे दिव्यांग भाई-बहन।
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