पब्लिक ट्रस्ट सिद्धांत (Public Trust Doctrine)
पब्लिक ट्रस्ट सिद्धांत (Public Trust Doctrine)
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क्या है पब्लिक ट्रस्ट सिद्धांत?
पब्लिक ट्रस्ट सिद्धांत एक ऐसा कानूनी सिद्धांत है जिसके अनुसार कुछ प्राकृतिक संसाधन जैसे – जल, वायु, वन, नदियाँ, समुद्र तट आदि – जनता की साझा संपत्ति माने जाते हैं और इनका संरक्षण करना राज्य (सरकार) का कर्तव्य होता है।
राज्य इन संसाधनों का मालिक नहीं, बल्कि ट्रस्टी (संरक्षक) होता है और वह इन्हें निजी स्वार्थ, लाभ या विकास परियोजनाओं के नाम पर किसी को बेच या नुकसान नहीं पहुँचा सकता।
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मुख्य बिंदु:
1. उत्पत्ति (Origin):
यह सिद्धांत रोमन कानून से आया है जिसमें कहा गया कि कुछ संसाधन (जैसे हवा, पानी) सभी के लिए समान रूप से हैं।
फिर यह ब्रिटिश कॉमन लॉ में विकसित हुआ और अब भारत समेत कई देशों में लागू होता है।
2. भारत में स्थिति:
सुप्रीम कोर्ट ने इस सिद्धांत को कई पर्यावरणीय मामलों में लागू किया है।
प्रमुख मामला: एम.सी. मेहता बनाम कमलनाथ (1997) – कोर्ट ने कहा कि सरकार पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील भूमि को निजी रिसॉर्ट बनाने के लिए नहीं दे सकती।
यह सिद्धांत संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 48A एवं 51A(g) से जुड़ा है जो पर्यावरण संरक्षण की बात करते हैं।
3. सरकार की भूमिका:
सरकार इन संसाधनों की मालिक नहीं है, केवल रक्षक है।
वह इन्हें सिर्फ जनहित में ही उपयोग कर सकती है, न कि निजी कंपनियों या उद्योगों को सौंपने के लिए।
4. जनहित में प्रभाव:
यह सिद्धांत जनहित याचिकाओं (PIL) का आधार बनता है।
नागरिक इस सिद्धांत के तहत पर्यावरण संरक्षण के लिए न्यायालय में याचिका दायर कर सकते हैं।
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उदाहरण:
नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए।
जंगलों में अवैध खनन रोकने के लिए।
समुद्र तटों पर निजी निर्माण पर रोक लगाने के लिए।
जल स्रोतों की सफाई और पुनर्जीवन के लिए।
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निष्कर्ष:
पब्लिक ट्रस्ट सिद्धांत आधुनिक भारत में पर्यावरण न्याय और सतत विकास का एक मजबूत आधार है। यह सुनिश्चित करता है कि प्राकृतिक संसाधन केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी संरक्षित रहें।
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