मुद्दों से व्यक्ति-केंद्रित राजनीति की ओर बदलाव के क्या कारण हैं।
यह एक महत्वपूर्ण अवलोकन है। भारत में राजनीति पारंपरिक रूप से विचारधाराओं और मुद्दों पर आधारित रही है, लेकिन हाल के दशकों में इसमें बड़ा बदलाव आया है। पहले सामाजिक न्याय, आर्थिक नीतियां, विकास योजनाएं, और सांस्कृतिक विचारधाराएं राजनीतिक दलों के मुख्य मुद्दे हुआ करते थे। लेकिन अब राजनीति तेजी से व्यक्ति-केंद्रित और पार्टी-केंद्रित होती जा रही है।
मुद्दों से व्यक्ति-केंद्रित राजनीति की ओर बदलाव के कारण:
1. मजबूत नेताओं का उभरना – करिश्माई नेताओं (जैसे नरेंद्र मोदी, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी आदि) की लोकप्रियता ने दलों की विचारधारा से ज्यादा नेता की छवि को प्राथमिकता दिलाई है।
2. मीडिया और सोशल मीडिया का प्रभाव – अब राजनीतिक विमर्श टीवी डिबेट और सोशल मीडिया ट्रेंड्स पर अधिक निर्भर हो गया है, जिससे तात्कालिक भावनात्मक अपील (personality cult) को बल मिलता है।
3. लोकलुभावन राजनीति (Populism) – नीतिगत चर्चाओं के बजाय मुफ्त योजनाओं (राशन, बिजली, पानी, कर्ज माफी) और भावनात्मक मुद्दों (धर्म, जाति, क्षेत्रीय पहचान) पर ध्यान दिया जा रहा है।
4. विपक्ष की कमजोरी – जब कोई एक पार्टी या नेता बहुत प्रभावी हो जाता है, तो विपक्ष मुद्दों की बजाय केवल उनके खिलाफ अभियान चलाने तक सीमित रह जाता है।
5. राजनीतिक दलों की विचारधारा का धुंधलापन – अब कई दल अपने मूल विचारों से हटकर केवल सत्ता में बने रहने के लिए रणनीतिक गठजोड़ करने लगे हैं। उदाहरण के लिए, कुछ दल दक्षिणपंथी और वामपंथी विचारधाराओं को एक साथ अपनाने में भी झिझकते नहीं।
क्या मुद्दों पर आधारित राजनीति खत्म हो चुकी है?
नहीं, मुद्दों पर आधारित राजनीति अभी भी मौजूद है, लेकिन यह मुख्यधारा से हटकर चल रही है। जैसे:
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन (आप, कुछ क्षेत्रीय दल)
रोजगार और आर्थिक नीतियां (कुछ युवा नेता इसे उठा रहे हैं)
स्वास्थ्य और शिक्षा सुधार (केरल, दिल्ली मॉडल आदि)
लेकिन ये मुद्दे राष्ट्रीय राजनीति में अक्सर हाशिए पर चले जाते हैं क्योंकि भावनात्मक और व्यक्ति-केंद्रित राजनीति ज्यादा प्रभावी साबित हो रही है।
भविष्य में राजनीति कैसी होगी?
अगर जनता जागरूक होकर नीतियों और मुद्दों पर ध्यान देना शुरू करे, तो राजनीति फिर से मुद्दों की ओर लौट सकती है। वरना, व्यक्ति और पार्टी आधारित राजनीति ही हावी रहेगी।
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