पर्यावरणवाद की तीन लहरें (The Three Waves of Environmentalism )
1. पहली लहर – संरक्षण और संवर्धन आंदोलन (19वीं सदी के अंत से 20वीं सदी की शुरुआत तक)
मुख्य फोकस:
प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, जंगलों और जंगली जीवन की रक्षा, और नैसर्गिक स्थलों को संरक्षित रखना।
मुख्य विशेषताएँ:
राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना।
प्रकृति की सुंदरता और उपयोगिता दोनों को महत्व दिया गया।
औद्योगिक शोषण से प्रकृति को बचाने का प्रयास।
प्रमुख व्यक्ति:
जॉन म्युअर – अमेरिका में जंगलों और पर्वतीय क्षेत्रों के संरक्षण के लिए कार्य।
गिफोर्ड पिंचोट – वैज्ञानिक तरीके से संसाधनों के प्रबंधन के पक्षधर।
मुख्य उपलब्धियाँ:
येलोस्टोन (1872) – पहला राष्ट्रीय उद्यान।
अमेरिका में फॉरेस्ट सर्विस और नेशनल पार्क सर्विस की स्थापना।
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2. दूसरी लहर – आधुनिक पर्यावरण आंदोलन (1960 के दशक से 1980 तक)
मुख्य फोकस:
प्रदूषण नियंत्रण, मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा, और पर्यावरणीय कानूनों की स्थापना।
मुख्य विशेषताएँ:
औद्योगिक प्रदूषण, रसायनों और परमाणु खतरे के प्रति जागरूकता।
जन आंदोलनों, प्रदर्शनों और पर्यावरणीय संगठनों का उदय।
पृथ्वी दिवस जैसे अभियानों की शुरुआत।
महत्वपूर्ण घटनाएँ:
"साइलेंट स्प्रिंग" (1962) – रेचेल कार्सन द्वारा लिखित पुस्तक, जिसने कीटनाशकों के दुष्प्रभावों को उजागर किया।
पहला पृथ्वी दिवस (1970)
लव कैनाल, भोपाल गैस त्रासदी जैसे हादसों ने चेतना बढ़ाई।
मुख्य उपलब्धियाँ:
EPA (Environmental Protection Agency) की स्थापना।
क्लीन एयर एक्ट, क्लीन वाटर एक्ट, एंडेंजर्ड स्पीशीज़ एक्ट जैसे कानून।
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3. तीसरी लहर – वैश्विक और सतत विकास आंदोलन (1990 के दशक से वर्तमान तक)
मुख्य फोकस:
जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, जैव विविधता की रक्षा और पर्यावरणीय न्याय।
मुख्य विशेषताएँ:
पर्यावरण को वैश्विक मुद्दे के रूप में देखा गया।
जलवायु नीति, नवीकरणीय ऊर्जा, और हरित तकनीक पर ज़ोर।
पर्यावरण के साथ सामाजिक न्याय, विशेष रूप से आदिवासी और कमजोर वर्गों के अधिकार।
महत्वपूर्ण घटनाएँ:
अर्थ समिट (1992), रियो डी जेनेरो
क्योटो प्रोटोकॉल (1997), पेरिस समझौता (2015)
Fridays for Future जैसे युवा नेतृत्व वाले आंदोलन।
मुख्य उपलब्धियाँ:
संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य (SDGs)
ग्रीन पॉलिसी, कार्बन क्रेडिट, और पर्यावरणीय CSR का विस्तार।
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