उत्तराखंड में जनसंख्या बदलाव: पलायन से पहाड़ी क्षेत्रों की राजनीतिक ताकत को क्या खतरा है?



उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों से हो रहा लगातार पलायन अब एक बड़े जनसांख्यिकीय बदलाव का कारण बन रहा है, जिससे न केवल आर्थिक और सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, बल्कि इन क्षेत्रों की राजनीतिक शक्ति और रणनीतिक महत्व भी प्रभावित हो रहा है।


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राजनीतिक प्रतिनिधित्व और चुनावी समीकरण

2008 की जनगणना के आधार पर हुई नई सीटों के परिसीमन में मैदानी क्षेत्रों को अधिक प्रतिनिधित्व मिला, जिससे कई पर्वतीय विधानसभा क्षेत्रों का राजनीतिक प्रभाव घट गया।
इसका नतीजा यह हुआ कि पर्वतीय क्षेत्रों की स्थानीय समस्याएं अब नीति-निर्माण के केंद्र में नहीं रहीं, क्योंकि राजनीतिक ध्यान उन क्षेत्रों की ओर चला गया जहां आबादी अधिक है।


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पलायन के कारण:

1. आर्थिक अवसरों की कमी:
पर्वतीय क्षेत्रों में नौकरियों और आय के स्रोतों की कमी लोगों को शहरों की ओर खींचती है।


2. सेवाओं की अनुपलब्धता:
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और बुनियादी सुविधाएं पहाड़ों में उपलब्ध नहीं हैं, जिससे लोग बेहतर जीवन के लिए पलायन करते हैं।


3. इंफ्रास्ट्रक्चर की कमजोरी:
सड़कों, इंटरनेट, परिवहन और अन्य बुनियादी ढांचे की कमी के कारण यहां रहना और आजीविका चलाना कठिन हो जाता है।




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रणनीतिक और सुरक्षा संबंधी खतरे

सीमा से सटे गांवों से हो रहा पलायन सुरक्षा के लिहाज से भी चिंता का विषय है। चीन और नेपाल की सीमाओं से लगे खाली होते गांव निगरानी और नियंत्रण की दृष्टि से भारत की रणनीतिक स्थिति को कमजोर कर सकते हैं।


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सरकारी प्रयास और चुनौतियां

उत्तराखंड सरकार ने पलायन को रोकने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे:

ग्रामीण विकास योजनाओं के माध्यम से स्थानीय रोजगार सृजन

पर्यटन, हस्तशिल्प, कृषि जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा


लेकिन इन योजनाओं की सफलता सीमित रही है क्योंकि संरचनात्मक समस्याएं—जैसे कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर और आर्थिक विविधता की कमी—अभी भी बनी हुई हैं।


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समाधान का रास्ता

इस जनसांख्यिकीय संकट से निपटने के लिए एक समग्र रणनीति की जरूरत है, जिसमें शामिल हो:

स्थानीय रोजगार के अवसरों का विस्तार

शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन जैसी मूलभूत सेवाओं की सुलभता

पर्वतीय क्षेत्रों को पर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व देना

बॉर्डर गांवों में पुनर्वास योजनाएं शुरू करना




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