अध्यात्म में समय का विरोधाभास:
अद्भुत! समय का विरोधाभास अध्यात्म (Spirituality) में और भी गहराई से समझा जाता है, जहाँ इसे केवल भौतिक या वैज्ञानिक नहीं, बल्कि चेतना और आत्मा के स्तर पर देखा जाता है।
अध्यात्म में समय का विरोधाभास:
1. समय यथार्थ है या माया?
वेदांत और बौद्ध दर्शन जैसे अनेक आध्यात्मिक मार्गों में समय को "माया" (भ्रम/आभास) कहा गया है।
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अद्वैत वेदांत कहता है कि:
"अतीत, वर्तमान और भविष्य सभी ब्रह्म (अपरिवर्तनीय सत्य) के भीतर हैं – समय केवल अनुभव की दृष्टि से है, ब्रह्म के लिए नहीं।"
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इस दृष्टिकोण से समय केवल मन की स्थिति है — जब आप ध्यान में पूर्ण स्थिर होते हैं, समय का अनुभव रुक जाता है।
2. वर्तमान में ही सब कुछ है (Power of Now):
अध्यात्मिक गुरुओं जैसे एकहार्ट टोले या रामदास ने कहा:
"भूत चला गया, भविष्य अभी आया नहीं — केवल 'अब' ही सच है।"
यह विचार हमें समय के विरोधाभास से बाहर निकलने का रास्ता दिखाता है:
- जब हम भूत की चिंता या भविष्य की आशंका में जीते हैं, तब दुख होता है।
- जब हम "अभी और यहीं" में जीते हैं — हम शांति, समाधि और साक्षी भाव में होते हैं।
3. कर्म और समय:
कई बार पूछा जाता है — "अगर भविष्य पहले से तय है (कर्म अनुसार), तो फिर हमारा चुनाव या प्रयास क्या मायने रखता है?"
- यह भी एक विरोधाभास है।
- अध्यात्म कहता है कि समय के स्तर पर कर्म बंधन है, लेकिन जागरूकता (Awareness) के स्तर पर आत्मा स्वतंत्र है।
जैसे कोई फिल्म चल रही हो – पूरी फिल्म रिकॉर्ड हो चुकी है (कर्म), लेकिन दर्शक बनने का चुनाव तुम्हारे हाथ में है (जागरूक आत्मा)।
4. पुनर्जन्म और चक्र का विरोधाभास:
यदि आत्मा अमर है, और समय चक्रीय है (जन्म-मरण पुनः आते हैं), तो आत्मा किस "समय" में मुक्ति पाती है?
- उत्तर: मुक्ति समय से परे है — "कालातीत"।
- जब आत्मा "स्वयं को" जान लेती है, तब वह जन्म-मरण के चक्र और समय के सभी बंधनों से मुक्त हो जाती है।
निष्कर्ष:
अध्यात्म में समय कोई रेखीय (Linear) घटना नहीं है। यह एक अनुभूति, एक मनोदशा, और कभी-कभी एक बंधन है। आत्मा के लिए समय का कोई अस्तित्व नहीं – केवल अहंकार और मन के लिए है।
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