उत्तराखंड में क्षेत्रीय पंचायत चुनाव

 उत्तराखंड में क्षेत्रीय पंचायत चुनाव एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है जो न केवल स्थानीय शासन को सशक्त बनाती है, बल्कि जनता को अपने अधिकारों और भागीदारी का सीधा मंच भी देती है। आइए इसे तीन भागों में समझते हैं:


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### 🔷 **1. पंचायती राज व्यवस्था क्या है?**


**पंचायती राज** एक त्रिस्तरीय लोकतांत्रिक प्रणाली है जिसे संविधान के 73वें संशोधन (1992) द्वारा वैधानिक दर्जा मिला। उत्तराखंड में भी यह व्यवस्था **उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम, 2016** के तहत संचालित होती है।


#### त्रिस्तरीय ढांचा:


1. **ग्राम पंचायत (ग्राम स्तर)**

2. **क्षेत्र पंचायत (ब्लॉक स्तर, जिसे क्षेत्रीय पंचायत भी कहा जाता है)**

3. **जिला पंचायत (जिला स्तर)**


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### 🔷 **2. क्षेत्रीय पंचायत चुनाव की राजनीति (ब्लॉक स्तर की राजनीति)**


क्षेत्र पंचायत सदस्य चुनकर **क्षेत्र पंचायत प्रमुख** को चुनते हैं। यह ब्लॉक स्तर पर विकास योजनाओं और बजट पर नियंत्रण रखते हैं।


#### ❗ राजनीति के प्रमुख मुद्दे:


* **दलगत राजनीति का बढ़ता असर**: यद्यपि पंचायत चुनाव गैर-राजनीतिक (non-party based) होते हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत में राजनीतिक दल परोक्ष रूप से समर्थन या विरोध करते हैं।

* **पैसे और बाहुबल का प्रभाव**: कुछ क्षेत्रों में धनबल और दबाव डालकर उम्मीदवारों को जिताने के प्रयास होते हैं।

* **जातीय और क्षेत्रीय समीकरण**: अक्सर जाति, उपजाति, गांव के गुट और वर्चस्व की राजनीति निर्णायक हो जाती है।

* **महिला और आरक्षित सीटों पर 'प्रॉक्सी राज'**: महिला आरक्षित सीटों पर पति या पुरुष रिश्तेदार ही वास्तविक सत्ता चला रहे हैं।


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### 🔷 **3. जनता के अधिकार पंचायती राज में**


#### ✅ जनता के मुख्य अधिकार:


1. **प्रतिनिधि चुनने का अधिकार**


   * ग्राम सभा, क्षेत्र पंचायत व जिला पंचायत में अपने प्रतिनिधि को चुनने का अधिकार।

2. **ग्राम सभा में भागीदारी का अधिकार**


   * ग्राम सभा में प्रस्ताव पास करने, बजट देखने और योजना स्वीकृति में सीधी भागीदारी।

3. **सूचना का अधिकार (RTI)**


   * पंचायत से जुड़ी योजनाओं, खर्च और निर्णयों की जानकारी लेने का अधिकार।

4. **शिकायत और अनियमितता पर कार्रवाई कराने का अधिकार**


   * यदि कोई पंचायत प्रतिनिधि भ्रष्टाचार या लापरवाही कर रहा है तो उसकी शिकायत जिला प्रशासन से कर सकते हैं।

5. **विकास योजनाओं में सुझाव और भागीदारी का अधिकार**


   * MGNREGA, PMAY, जल जीवन मिशन आदि योजनाओं के क्रियान्वयन में भागीदारी का अधिकार।


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### 🔷 **वर्तमान चुनौतियाँ**


* **शिक्षा व जानकारी की कमी**: अधिकतर ग्रामीण मतदाता अपने अधिकारों व पंचायती राज के कानूनी ढांचे से परिचित नहीं हैं।

* **भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी**

* **ग्राम सभा की अनदेखी**: ग्राम सभा को केवल औपचारिकता समझा जाता है, जबकि वही इसकी आत्मा है।

* **राजनीतिक दखल**: उच्च स्तर के नेताओं द्वारा पंचायत निर्णयों में हस्तक्षेप।


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### 🟢 **समाधान और सुधार के सुझाव**


* पंचायत प्रतिनिधियों के लिए **प्रशिक्षण और जागरूकता अभियान।**

* ग्राम सभाओं को **निर्णायक भूमिका में लाना।**

* पंचायतों को **डिजिटल और पारदर्शी बनाना** – e-Panchayat प्रणाली को बढ़ावा।

* महिला और कमजोर वर्गों को **प्रभावी भूमिका** देने के लिए निगरानी तंत्र।

* युवाओं को पंचायत राजनीति में **सक्रिय भागीदारी** के लिए प्रेरित करना।


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### 🔚 निष्कर्ष:


क्षेत्रीय पंचायत चुनाव स्थानीय लोकतंत्र की जड़ हैं। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में, जहां विकास की ज़रूरतें और समस्याएं विशिष्ट हैं, वहां पंचायतें ही सही मायनों में **"जनता की सरकार, जनता के लिए"** बन सकती हैं – यदि जनता अपने अधिकारों को जाने, जागरूक रहे और सही प्रतिनिधि चुने।






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