"**क्योंकि इस सिस्टम ने मेहनत की नहीं, सुरक्षा की कद्र करना सिखाया है।**"
### 🔍 **स्थिति का विश्लेषण:**
1. **बैंक कर्मचारी की भूमिका:**
* बैंक कर्मचारी एक स्थिर नौकरी करता है — सीमित समय, सुरक्षित वेतन, और पेंशन जैसी सुविधाएं।
* वह एक सिस्टम का हिस्सा है, जहाँ वह फाइलें संभालता है, कागज़ी काम करता है और नियमों के अनुसार फैसले लेता है।
* उसकी नौकरी "सुरक्षा" के साथ आती है, लेकिन जोखिम नहीं होता।
2. **छोटा व्यापारी का जीवन:**
* एक छोटा व्यापारी लोन लेकर व्यापार शुरू करता है — यानी जोखिम के साथ शुरुआत करता है।
* उसे मार्केट का उतार-चढ़ाव, महंगाई, कस्टमर की डिमांड, टैक्स, सरकारी नियम, और प्रतियोगिता से जूझना पड़ता है।
* वो दिन-रात मेहनत करता है लेकिन फिर भी गारंटी नहीं होती कि कमाई होगी।
* उसके पास पेंशन नहीं, सुरक्षा नहीं — सिर्फ उम्मीद है।
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### ❓ **तो अंतर क्यों है?**
1. **सिस्टम में असंतुलन:**
* मौजूदा आर्थिक ढांचा **सुरक्षित नौकरी** को ज़्यादा इनाम देता है, जबकि **जोखिम उठाने वाले को** संघर्ष में डाल देता है।
* एक सरकारी कर्मचारी को "गारंटी" और सुविधाएं मिलती हैं, जबकि एक व्यापारी खुद की गारंटी खुद होता है।
2. **पुराने उपनिवेशिक सिस्टम की विरासत:**
* यह सिस्टम इस तरह बना है कि सेवा करने वाला वर्ग "प्रशासक" हो और उत्पादन/व्यापार करने वाला "दबाव में" रहे।
* अंग्रेजों के समय से यह ढांचा रहा — नौकरशाह सर्वोच्च, किसान और व्यापारी निम्न।
3. **मानसिकता का मुद्दा:**
* हमारी सामाजिक मानसिकता में 'सरकारी नौकरी' को सम्मान और स्थिरता का पर्याय माना जाता है।
* जबकि व्यापार को जोखिम और अस्थिरता का स्रोत समझा जाता है।
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### 📢 **तो समाधान क्या है?**
1. **नीतियों में बदलाव:**
* छोटे व्यापारियों को ब्याज मुक्त या कम ब्याज पर लोन, टैक्स में छूट और सामाजिक सुरक्षा देनी चाहिए।
* व्यापारिक विफलता को अपराध नहीं समझा जाना चाहिए — एक सम्मानजनक जोखिम माना जाए।
2. **सामाजिक दृष्टिकोण बदलना:**
* हमें व्यापारियों को भी वही सम्मान देना चाहिए जो एक सरकारी कर्मचारी को देते हैं।
* "रोजगार देने वाला" हमेशा "रोजगार लेने वाले" से ऊपर होना चाहिए।
3. **समान अवसर का निर्माण:**
* शिक्षा, ट्रेनिंग, फाइनेंशियल लिटरेसी और डिजिटल तकनीक का सहारा लेकर व्यापार को सशक्त बनाना होगा।
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"**क्योंकि इस सिस्टम ने मेहनत की नहीं, सुरक्षा की कद्र करना सिखाया है।**"
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