पत्रकारिता का प्रभाव और जिम्मेदारी:
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🧠 प्रश्न का सार:
> "जब न्यायालय में किसी आम आदमी को अपनी बात रखने के लिए अधिवक्ता की आवश्यकता होती है, तो फिर समाज की पीड़ा कहने और सरकार के कार्यों को समाज के सामने लाने वाले पत्रकारों के लिए शैक्षिक योग्यता क्यों नहीं निर्धारित है, जबकि पत्रकारिता का प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है?"
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✍️ उत्तर – विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से:
1. पत्रकारिता का प्रभाव और जिम्मेदारी:
पत्रकारिता केवल सूचना देने का कार्य नहीं है, यह समाज की चेतना को प्रभावित करती है, विचारधारा को गढ़ती है और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में कार्य करती है। जब किसी पत्रकार की रिपोर्ट से सामाजिक उथल-पुथल मच सकती है, चुनाव का रुख बदल सकता है या किसी की छवि बन या बिगड़ सकती है — तब यह जरूरी हो जाता है कि वह व्यक्ति प्रशिक्षित, निष्पक्ष और संवेदनशील हो।
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2. अधिवक्ता की तरह पत्रकार के लिए योग्यता क्यों नहीं?
अधिवक्ता: कानून की गहरी समझ, व्याख्या की क्षमता और संवैधानिक दायरे में बात रखने के लिए शैक्षिक योग्यता, प्रशिक्षण और बार काउंसिल पंजीकरण अनिवार्य होते हैं।
पत्रकार: जबकि पत्रकार के लिए किसी भी स्तर पर शैक्षिक योग्यता या पंजीकरण की बाध्यता नहीं है। कोई भी व्यक्ति खुद को पत्रकार घोषित कर सकता है — चाहे उसके पास योग्यता हो या नहीं।
📌 यह स्थिति लोकतंत्र के लिए खतरा भी बन सकती है, क्योंकि:
अपुष्ट सूचनाओं के प्रसार से अफवाहें और नफरत फैल सकती है।
झूठे नैरेटिव समाज को गुमराह कर सकते हैं।
कॉर्पोरेट और राजनीतिक एजेंडा से प्रेरित "पत्रकार" जनभावनाओं का शोषण कर सकते हैं।
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3. पत्रकारिता में योग्यता तय न होने के पीछे कारण:
कारण विवरण
✅ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) भारत में हर नागरिक को बोलने और लिखने की स्वतंत्रता है। इसलिए पत्रकारिता में प्रवेश के लिए बाध्यता नहीं बनाई गई।
✅ पत्रकारिता एक पेशा नहीं, अधिकार माना गया इसे कभी विधिवत 'प्रोफेशन' की तरह विनियमित नहीं किया गया, बल्कि एक सामाजिक कर्तव्य के रूप में देखा गया।
⚠️ कोई नियामक संस्था नहीं है जैसे बार काउंसिल वकीलों के लिए या MCI डॉक्टरों के लिए होती है, पत्रकारों के लिए ऐसा कोई सांविधिक निकाय नहीं है। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पास सिर्फ सलाह देने की शक्ति है, दंडात्मक शक्ति नहीं।
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🔎 समाधान की दिशा में विचार:
1. पत्रकारिता संस्थाओं को मान्यता देना अनिवार्य हो
जैसे मेडिकल कॉलेज और लॉ कॉलेज होते हैं, वैसे ही पत्रकारिता की डिग्री को मान्यता प्राप्त संस्थानों से अनिवार्य बनाया जाए।
2. प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया या कोई नई संस्था को संवैधानिक शक्ति दी जाए
जिससे वो पत्रकारों के आचरण संहिता, नैतिक मानदंड और शैक्षणिक योग्यता निर्धारित कर सके।
3. 'राष्ट्रीय पत्रकारिता पंजीकरण प्रणाली' (National Journalism Registration System) शुरू हो
जिससे फर्जी पत्रकार और अपराधियों द्वारा पत्रकारिता के दुरुपयोग पर रोक लगाई जा सके।
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📢 निष्कर्ष:
> ✅ "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आत्मा है, लेकिन जब यह अधिकार सामाजिक दायित्व के साथ न जोड़ा जाए, तो अराजकता जन्म लेती है।"
आज की डिजिटल और संवेदनशील दुनिया में यह जरूरी हो गया है कि पत्रकारिता को भी एक विधिवत पेशे के रूप में देखा जाए और इसके लिए शैक्षणिक, नैतिक और व्यवहारिक मानक तय किए जाएं — जैसे डॉक्टर, वकील या शिक्षक के लिए होते हैं।
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