"मैं रिपोर्टर नहीं, पत्रकार हूँ"




"मैं रिपोर्टर नहीं, पत्रकार हूँ"
✍️ लेखक: दिनेश पाल सिंह गुसाईं 

आज के दौर में जब मीडिया का बड़ा हिस्सा "ब्रेकिंग न्यूज़", टीआरपी और सनसनी की दौड़ में लगा हुआ है, तब यह कहना कि "मैं रिपोर्टर नहीं, पत्रकार हूँ", एक वैचारिक क्रांति जैसा प्रतीत होता है। यह कथन केवल एक परिचय नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी का अहसास है — एक वादा है सच्चाई, जनहित और नैतिकता के साथ।

रिपोर्टर और पत्रकार में क्या फर्क है?

रिपोर्टर वह होता है जो घटनाओं को रिपोर्ट करता है — जो हुआ, जैसा हुआ, वैसा बताता है। पर पत्रकार का कार्य केवल सूचना देना नहीं होता, बल्कि उस सूचना के पीछे की सच्चाई को उजागर करना, उसके सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक संदर्भों को समझाना और जनचेतना को जागृत करना होता है।

रिपोर्टर कैमरा उठाकर मौके पर पहुंचता है। पत्रकार समाज की नब्ज पर हाथ रखता है।
रिपोर्टर खबरें लाता है। पत्रकार सवाल उठाता है।

पत्रकारिता का अर्थ सिर्फ "समाचार देना" नहीं है

पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मानी जाती है। इसका उद्देश्य केवल सरकार, विपक्ष या प्रशासन की गतिविधियों को रिपोर्ट करना नहीं, बल्कि जनता की आवाज़ बनना, सत्ता से जवाब मांगना, और जमीनी हकीकत को दुनिया के सामने लाना भी है।

एक पत्रकार अपने लेख, रिपोर्ट, दस्तावेज़ी फिल्म, जन संवाद, या डिजिटल माध्यम से ऐसी बातों को उठाता है जिनपर मुख्यधारा की मीडिया चुप रहती है।

पत्रकारिता की आत्मा – जनपक्षधरता

मैं पत्रकार हूँ क्योंकि मैं जनता की पीड़ा, किसानों की आत्महत्या, बेरोजगार युवाओं की हताशा, महिलाओं के संघर्ष, और वंचितों की अनकही कहानियों को समाज के सामने लाना चाहता हूँ।
मैं पत्रकार हूँ क्योंकि मुझे सत्ता से डर नहीं लगता, बल्कि अन्याय से चुप रह जाना डरावना लगता है।

मेरे पास कैमरा हो या न हो, मेरी कलम में आवाज़ है।
मेरे पास चैनल न हो, पर मेरे शब्दों में शक्ति है।

मैं रिपोर्टर नहीं हूं क्योंकि...

मैं टीआरपी की रेस में शामिल नहीं हूँ।

मैं किसी दलाल चैनल का टूल नहीं हूँ।

मैं कॉरपोरेट मालिकों के एजेंडे को नहीं चलाता।

मैं "कौन पहले दिखाएगा" से ज्यादा सोचता हूँ "क्या दिखाया जाना चाहिए"।


मैं पत्रकार हूँ क्योंकि...

मैं सच्चाई की कीमत जानता हूँ।

मैं समाज के अंतिम व्यक्ति की बात करता हूँ।

मैं सत्ता से सवाल करता हूँ, भले वो किसी भी दल की हो।

मैं जानता हूँ कि लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब पत्रकार स्वतंत्र और निर्भीक होंगे।



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निष्कर्ष:

"मैं रिपोर्टर नहीं, पत्रकार हूँ" — यह वाक्य केवल एक अंतर नहीं बताता, यह एक चेतावनी भी है, कि हम बाजार और सत्ता की पत्रकारिता से आगे बढ़कर जनता की पत्रकारिता की ओर लौटें। पत्रकार वही जो सत्ता का नहीं, समाज का पक्ष ले।

🖋️ क्योंकि जब सब चुप हैं, तब एक पत्रकार की आवाज़ ही सबसे बड़ी उम्मीद होती है।

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