“नाटक: पंचम वेद की संज्ञा और गढ़वाली रंगपरंपरा”



“नाटक: पंचम वेद की संज्ञा और गढ़वाली रंगपरंपरा”


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🟪 Slide 1: टाइटल स्लाइड

Title: नाटक: पंचम वेद क्यों?

Subtitle: भारतीय संस्कृति और गढ़वाली लोकनाट्य की दृष्टि से

Presented by: [Your Name / Udaen Foundation]

Background: रंगमंच की झलक + पुरातन ग्रंथ की पृष्ठभूमि



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🟦 Slide 2: परिचय (Introduction)

नाटक क्या है?

केवल मनोरंजन नहीं – शिक्षण, समाजिक संवाद, और संस्कृति संरक्षण का माध्यम

पंचम वेद कहे जाने की मूल अवधारणा



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🟩 Slide 3: वेद और नाट्य का संबंध

वेद नाट्यशास्त्र में उपयोग

ऋग्वेद संवाद / पाठ्य
यजुर्वेद अभिनय, मंचन
सामवेद संगीत, छंद
अथर्ववेद भाव, रहस्य, अनुभूति


👉 नाटक = वेदों का जीवंत समन्वय


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🟨 Slide 4: नाट्यशास्त्र और ब्रह्मा की उत्पत्ति कथा

भरतमुनि की रचना: नाट्यशास्त्र

ब्रह्मा ने चारों वेदों से नाटक का निर्माण किया

श्लोक:
"नाट्यं भगवता दृष्टं लोकसंस्मरणं परम्..."


📌 नाटक बना सामान्य जन के लिए वेदों का सरल माध्यम


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🟥 Slide 5: नाटक के नौ रस – जीवन के नौ रंग

श्रृंगार, वीर, करुण, रौद्र, हास्य, भयानक, बीभत्स, अद्भुत, शांत

नाटक जीवन का पूरा दर्पण
🎭 हर रस = जीवन का एक भाव



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🟧 Slide 6: नाटक का सामाजिक और ऐतिहासिक योगदान

स्वाधीनता आंदोलन में लोकनाट्य का उपयोग

बाल विवाह, छुआछूत, भ्रूणहत्या जैसे मुद्दों पर नुक्कड़ नाटक

ग्राम्य संस्कृति में सामाजिक सुधार का साधन



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🟫 Slide 7: गढ़वाली संस्कृति में नाटक की भूमिका

लोकगाथा आधारित नाटक: जैसे बृजराज कथा, रुद्रगायत्री, हिटाणु की कथा

जागर और लोक रंगमंच – लोकदेवताओं की कथाएँ मंचित होती हैं

मंगल गीत और देवसंवाद – नाटकीय तत्वों से भरपूर

आधुनिक गढ़वाली नाटकों में —
🔹 पलायन, भ्रष्टाचार, पहाड़ी अस्मिता, जल-जंगल की रक्षा



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🟦 Slide 8: नाटक = ज्ञान + सेवा + समाज

पंचम वेद इसलिए क्योंकि:

ज्ञान को दृश्य रूप देता है

जनता को सीधे जोड़ता है

धर्म और नीति को सिखाने का जीवंत माध्यम




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🟩 Slide 9: निष्कर्ष

> “नाटक वह वेद है जिसे जनता ने अपने हृदय में जिया है।”
“जहां शब्द मौन हो जाए, वहां मंच बोलता है।”
👉 नाटक केवल रंगमंच नहीं — जीवंत वेद है।




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🔷 Slide 10: धन्यवाद स्लाइड

🙏 धन्यवाद

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