"ग्रामसभा: लोकतंत्र की जड़ में बैठी ताकत"
"ग्रामसभा: लोकतंत्र की जड़ में बैठी ताकत"
ग्रामसभा: लोकतंत्र की जड़ में बैठी ताकत
✍️ लेखक –
जब हम लोकतंत्र की बात करते हैं तो हमारे ज़ेहन में संसद, विधानसभा या नगर निगम की तस्वीर उभरती है। लेकिन भारत का असली लोकतंत्र, उसकी आत्मा, उसकी जड़ों में बैठी एक अदृश्य मगर जीवंत संस्था है – ग्रामसभा।
ग्रामसभा सिर्फ एक कानूनी शब्द नहीं है, यह भारत के ग्रामीण लोकतंत्र की वह बुनियाद है जो न केवल शासन की पहली सीढ़ी है, बल्कि सामाजिक न्याय, जनभागीदारी और आत्मनिर्भरता की असली पाठशाला भी है।
✅ क्या है ग्रामसभा?
भारतीय संविधान के 73वें संशोधन (1992) के तहत पंचायती राज प्रणाली को लागू करते हुए ग्रामसभा की अवधारणा को वैधानिक दर्जा मिला।
ग्रामसभा हर गांव में उस क्षेत्र की संपूर्ण जनता की सभा है जिसमें सभी 18 वर्ष से ऊपर के नागरिक भाग लेते हैं।
यह कोई निर्वाचित संस्था नहीं, बल्कि गांव का हर नागरिक इसका सदस्य होता है।
🧩 ग्रामसभा की भूमिका: सिर्फ सलाह नहीं, शक्ति भी
ग्रामसभा को अक्सर सिर्फ "सुझाव देने वाली संस्था" समझा जाता है, जबकि सच्चाई यह है कि:
- यह पंचायत की योजनाओं की स्वीकृति देती है
- बजट पर विचार और निगरानी करती है
- विकास कार्यों का सामाजिक लेखा-जोखा (Social Audit) करती है
- भ्रष्टाचार, भेदभाव, या गलत खर्च पर सवाल पूछने का अधिकार रखती है
- जरूरत पड़ने पर पंचायत की अविश्वास प्रस्ताव तक की प्रक्रिया शुरू कर सकती है
⚖️ लोकतंत्र की असली पाठशाला
ग्रामसभा वह मंच है जहाँ एक किसान भी जिला पंचायत अध्यक्ष से सवाल कर सकता है, जहाँ एक महिला भी विकास योजनाओं की निगरानी कर सकती है, और जहाँ वोट डालने से भी बड़ी जिम्मेदारी है – सवाल पूछने की, भागीदारी निभाने की।
📌 ग्रामसभा क्यों ज़रूरी है?
- नीतियों का स्थानीयकरण – सरकार की योजनाएं कागज़ से निकलकर गाँव की ज़रूरतों के अनुसार ढलती हैं।
- जवाबदेही की व्यवस्था – जनता खुद अपनी योजनाओं पर निगरानी रखती है।
- भागीदारी का लोकतंत्र – केवल चुने हुए नहीं, सभी नागरिक विकास की प्रक्रिया में भागीदार बनते हैं।
- पारदर्शिता – सबके सामने, सबके लिए निर्णय।
🚨 लेकिन क्या ग्रामसभा जीवित है?
यह सबसे गंभीर प्रश्न है।
बहुत-से गाँवों में ग्रामसभा सालों तक नहीं होती।
कई जगह होती भी है तो मात्र खानापूर्ति बन जाती है।
जनता को न तो अधिकारों की जानकारी है, न प्रक्रिया की समझ।
🌱 गांव तभी बचेगा जब ग्रामसभा जगेगी
आज गांवों में विकास से अधिक ज़रूरत है जवाबदेही और जागरूकता की।
जनप्रतिनिधि चुनने भर से गांव नहीं बदलेगा,
जब तक ग्रामसभा में बैठने वाला हर नागरिक यह न माने कि:
"गांव मेरा है, जिम्मेदारी मेरी है, और ग्रामसभा मेरी आवाज़ है।"
✅ समाधान: ग्रामसभा को पुनर्जीवित कैसे करें?
- हर पंचायत में प्रत्येक माह/त्रैमासिक ग्रामसभा अनिवार्य रूप से आयोजित हो
- महिलाओं, युवाओं, दलितों की भागीदारी सुनिश्चित हो
- ग्रामसभा कार्यवाही रजिस्टर सार्वजनिक किया जाए
- सामाजिक संगठनों, स्वयंसेवी संस्थाओं को ग्रामसभा सशक्तिकरण में जोड़ा जाए
- स्कूल-कॉलेज स्तर पर ग्रामसभा की भूमिका पढ़ाई जाए
✊ निष्कर्ष: लोकतंत्र का मंदिर गाँव में है
भारत की आत्मा गाँव में बसती है, और गाँव की आत्मा ग्रामसभा में।
अगर लोकतंत्र को बचाना है, तो केवल वोट डालना काफी नहीं —
ग्रामसभा में बैठना, सवाल करना और जागना जरूरी है।
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