नाटकों को 'पांचवां वेद' क्यों कहा जाता है
नाटकों को 'पांचवां वेद' क्यों कहा जाता है — यह प्रश्न भारतीय साहित्य, संस्कृति और दर्शन की गहराई से जुड़ा हुआ है। इस विचार की जड़ें हमारे प्राचीन ग्रंथों और भारतीय रंगमंच परंपरा में हैं। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
🕉️ 'नाट्य वेद' — पांचवां वेद क्यों कहा गया?
भारतीय परंपरा में चार वेदों को ज्ञान के मूल स्रोत माना जाता है:
- ऋग्वेद – स्तुति और प्रकृति
- यजुर्वेद – कर्मकांड
- सामवेद – संगीत
- अथर्ववेद – जीवन की व्यावहारिक विद्या
लेकिन आमजन के लिए इन वेदों की भाषा और शैली कठिन थी। इसलिए, ऋषि-मुनियों ने नाट्य को एक ऐसा माध्यम बनाया जिससे ज्ञान, धर्म, नीति, विज्ञान, कला और दर्शन को सुलभ, जीवंत और रोचक तरीके से जनता तक पहुँचाया जा सके।
📜 'नाट्यशास्त्र' में उल्लेख – भरतमुनि की परंपरा
'नाट्यशास्त्र', जो कि महर्षि भरत द्वारा रचित ग्रंथ है, उसमें स्पष्ट रूप से लिखा है:
“नाट्यं भगवता दृष्टं लोकसंस्मरणं परम्।
वेदोपवेदसंयुक्तं नाट्यं पंचममुच्यते।”
अर्थ: भगवान ब्रह्मा ने वेदों का सार लेकर नाट्य की रचना की, ताकि सामान्य जन भी ज्ञान, धर्म, कर्म, भक्ति और नीति को सहज रूप में समझ सकें। इसी कारण नाट्य को ‘पंचम वेद’ यानी पांचवां वेद कहा गया।
🎭 नाटक में वेदों का समन्वय – कैसे?
वेद | नाट्यशास्त्र में समाहित रूप |
---|---|
ऋग्वेद | संवाद व कथा (पाठ्य तत्व) |
यजुर्वेद | अभिनय व कर्म की विधि |
सामवेद | संगीत, गायन, छंद |
अथर्ववेद | भाव, रहस्य, अनुभूति |
नाटक इन चारों को जोड़ता है — शब्द, भाव, ध्वनि और क्रिया के माध्यम से।
🌍 जनसंचार और सामाजिक सुधार का साधन
- नाटक शिक्षा और मनोरंजन का संतुलित माध्यम है।
- रामलीला, महाभारत, लोकनाट्य, नुक्कड़ नाटक — ये सब केवल कला नहीं, सामाजिक संवाद के वाहक हैं।
- स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जागरण तक — नाटक ने जन-चेतना जगाई है।
🔮 नाटक = आध्यात्मिक और लौकिक पुल
नाटक श्रृंगार, करुण, वीर, हास्य, भय जैसे नौ रसों के माध्यम से जीवन के हर पक्ष को दिखाता है।
इसलिए यह केवल मंच नहीं, मानव जीवन का दर्पण है।
जहां दर्शन, कला और समाजशास्त्र एक साथ सांस लेते हैं।
✍️ निष्कर्ष:
“नाटक न केवल दृश्य होता है, वह दर्शन होता है।
जहां शब्द बोलते नहीं, आत्मा सुनती है — वही पंचम वेद है।”
नाटक ज्ञान, धर्म, समाज और भावनाओं का ऐसा संगम है, जो वेदों को जीवंत करता है — इसलिए ‘नाट्य वेद’ को पांचवां वेद कहा गया है।
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