उत्तराखंड में सबसे हालिया पर्यावरणीय संकट — कारण और मनसा
उत्तराखंड में सबसे हालिया पर्यावरणीय संकट — कारण और मनसा
प्राकृतिक आपदा = भगवान की क्रूरता?
– ज्यादातर वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण यह मानते हैं कि भगवान सीधे तबाही नहीं भेजता; बल्कि प्रकृति के नियम और संतुलन ही आपदाओं का कारण बनते हैं। उत्तराखंड जैसी भौगोलिक रूप से अस्थिर जगहों पर प्राकृतिक आपदाएँ स्वाभाविक हैं। लेकिन जब इन्हें मानवजनित नुकसान से जोड़कर देखा जाए, तो ये “क्रूरता” ईश्वर की नहीं, बल्कि मानवता की होती है।
मानवजनित कारण और मंशा क्या हो सकती है?
1. अनियंत्रित विकास और अवैज्ञानिक निर्माण
- चार धाम मार्ग परियोजना: यह तीर्थयात्रियों के लिए सुविधा तो देती है, लेकिन असंतुलित पहाड़ी कटाई और अपर्याप्त जल निकासी व्यवस्थायें 811 भू-खिसकावों का कारण बनीं—ज्यामातर हादसे NH-34 के पास हुए, जहाँ ढलानें 80° से भी अधिक खड़ी हैं ।
- अराजक निर्माण और अतिक्रमण: हाइड्रोपावर डैम, सुरंग, होटल, होलिपैड्स—ये सब निर्माण तेजी से हो रहे हैं, जिससे पहाड़ी संतुलन बिगड़ रहा है ।
2. वनों की कटाई और जंगलों की आग
- पर्यटन, खेती, अवैध अतिक्रमण से जंगलों में आग लगने की घटनाएँ बढ़ी हैं—उदाहरण के लिए, नवंबर 2023 से 2024 तक 868 घटनाएं, लगभग 1,000 हेक्टेयर जंगल जल गया ।
3. जल स्रोतों का असंतुलित प्रबंधन और प्रदूषण
- मंदाकिनी नदी जैसे पवित्र जल स्रोतों में पर्यटकों और स्थानीय आबादी की गतिविधियों से प्रदूषण बढ़ा है—including घाटों पर सीमेंट का निर्माण, अवशिष्ट जल, अपशिष्ट ।
4. जलवायु परिवर्तन एवं ग्लेशियल खतरे
- हालिया क्लाउडबर्स्ट और ग्लेशियल झीलों के अचानक फटने जैसी घटनाएँ बढ़ीं हैं। उदाहरण: धराली में 5 अगस्त को आने वाली फ्लैश फ्लड को क्लाउडबर्स्ट से प्रेरित मिंटेनेंस फेंक (डेब्रिस फ्लो) माना गया।
- जलवायु परिवर्तन और भौगोलिक अस्थिरता जैसे कारक प्राकृतिक जोखिमों को और गंभीर बनाते हैं ।
मनसा क्या हो सकती है?
इन आपदाओं के पीछे निम्नलिखित मानवीय मंशाएँ हो सकती हैं:
मंशा | विवरण |
---|---|
लालच और लाभ | पर्यटन, निर्माण, बिजली परियोजनाओं से त्वरित मुनाफ़ा—पर्यावरण की कीमत पर |
लापरवाही और नियोजन की कमी | जल निकासी, भू-इंजीनियरिंग और समस्या-पूर्व चेतावनी में कमी |
पारदर्शिता की कमी | स्थानीय समुदायों को शामिल न करना, गलत या अधूरी जानकारी देना |
निष्कर्ष: भगवान नहीं—उलझे हुए मानव स्वभाव और व्यवस्था के कारण
- यदि घटना प्राकृतिक है, तो वह ईश्वर का दंड नहीं, बल्कि प्रकृति की चेतावनी है।
- यदि यह मानवजनित है, तो यह लालच और लापरवाही की देन है—जो वास्तव में क्रूरता कहलाने योग्य है।
- विकास होना चाहिए, पर प्रकृति का सम्मान और दीर्घकालिक रणनीतिकअनिवार्य है।
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