सब्र की ताक़त और सताने वालों की औक़ात



कहते हैं कि इंसान की असली शक्ति उसके गुस्से में नहीं, बल्कि उसके सब्र में छुपी होती है। यह बात इस पंक्ति में पूरी तरह झलकती है –
"जिन लोगों को सब्र करने की आदत पड़ जाती है, सताने वालों की औक़ात दो कोड़ी की रह जाती है।"

सब्र क्यों है सबसे बड़ी ताक़त?

सब्र करना कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी बहादुरी है। जो व्यक्ति गुस्से, दुख और अन्याय को चुपचाप सहता है, वह भीतर से मजबूत बनता है। समय के साथ उसका धैर्य ही उसकी ढाल और हथियार बन जाता है। वहीं, जो लोग दूसरों को सताने का काम करते हैं, वे धीरे-धीरे अपनी असलियत खो देते हैं।

सताने वालों की औक़ात क्यों घट जाती है?

क्योंकि अत्याचार और गलत काम लंबे समय तक टिक नहीं सकते।

सब्र करने वाला व्यक्ति अंदर ही अंदर और दृढ़ बनता है।

इतिहास गवाह है कि जिसने जनता को सताया, उसका अंत अपमानजनक ही हुआ।

सताने वाला व्यक्ति चाहे जितना ताकतवर क्यों न लगे, लेकिन धैर्यवान इंसान के सामने उसकी हैसियत "दो कोड़ी" की रह जाती है।


सब्र और न्याय का रिश्ता

सब्र का मतलब यह नहीं कि अन्याय को हमेशा चुपचाप सहा जाए। इसका अर्थ है सही समय का इंतज़ार करना और सही मौके पर खड़े होना। जब सब्र अपने शिखर पर पहुंचता है तो वह न्याय और बदलाव का मार्ग खोलता है।

जीवन का संदेश

सब्र हमें भीतर से मजबूत करता है।

सताने वाले कभी टिकते नहीं, उनकी ताकत अस्थायी होती है।

इतिहास और समाज में हमेशा वही याद रखा जाता है, जिसने सब्र और सत्य के रास्ते पर चलकर लड़ाई जीती।



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निष्कर्ष

सच्ची ताकत उसी की है, जो सब्र करता है। जिनके पास धैर्य होता है, वे वक्त के साथ सबसे बड़ी जीत हासिल करते हैं। और जो दूसरों को सताते हैं, उनका अंत छोटा और औक़ात नगण्य ही रह जाता है।



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