भारत का रूस और चीन की ओर आर्थिक-व्यापारिक झुकाव: क्या बदल रही है सत्ता की विचारधारा?
भारत का रूस और चीन की ओर आर्थिक-व्यापारिक झुकाव: क्या बदल रही है सत्ता की विचारधारा?
लेखक: दिनेश पाल सिंह गुसाईं
भारत की विदेश और आर्थिक नीति में हाल के वर्षों में एक दिलचस्प बदलाव देखने को मिल रहा है। अमेरिका और यूरोप के पारंपरिक साझेदारों के साथ संबंध बनाए रखते हुए, भारत ने रूस और चीन जैसे कम्युनिस्ट शासन वाले देशों के साथ भी अपने आर्थिक और व्यापारिक रिश्तों को मज़बूत करना शुरू किया है। यह परिवर्तन केवल भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है या सत्ता पार्टी की विचारधारा में भी कोई बदलाव आ रहा है — यह सवाल अब चर्चा में है।
1. रूस के साथ ऊर्जा और रक्षा साझेदारी
रूस दशकों से भारत का सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता रहा है, लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के चलते भारत ने सस्ते रूसी कच्चे तेल की खरीद में तेज़ी लाई।
भारत और रूस के बीच रुपया-रूबल व्यापार व्यवस्था और चालू खाते के संतुलन पर बातचीत इस रिश्ते को और मज़बूती देती है।
यह आर्थिक समीकरण, पश्चिमी दबाव के बावजूद, भारत की "रणनीतिक स्वायत्तता" की नीति को दिखाता है।
2. चीन के साथ प्रतिस्पर्धा और व्यापार
सीमा विवाद और लद्दाख में तनातनी के बावजूद, चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, फार्मा रॉ मटीरियल और केमिकल्स जैसे क्षेत्रों में चीन पर भारत की निर्भरता अभी भी अधिक है।
यह व्यावहारिक आर्थिक नीति और राजनीतिक वैचारिक मतभेद के बीच संतुलन का उदाहरण है।
3. विचारधारा पर असर?
सत्ता में मौजूद पार्टी का ऐतिहासिक झुकाव राष्ट्रवादी-पूंजीवादी मॉडल की ओर रहा है, जो निजी क्षेत्र और विदेशी निवेश को बढ़ावा देता है।
लेकिन रूस और चीन जैसे समाजवादी/राज्य-नियंत्रित अर्थव्यवस्था वाले देशों के साथ गहरे रिश्ते विचारधारा में "व्यावहारिक लचीलापन" दिखाते हैं।
यह परिवर्तन राजनीतिक वैचारिक बदलाव से ज्यादा भू-राजनीतिक और आर्थिक अनिवार्यता का नतीजा लगता है।
4. भू-राजनीतिक मजबूरी बनाम वैचारिक मेल
अमेरिका-यूरोप: तकनीक, रक्षा और निवेश के बड़े स्रोत।
रूस-चीन: ऊर्जा, रक्षा तकनीक, और बड़े पैमाने पर बाज़ार व सप्लाई चेन।
भारत की नीति अब बहुध्रुवीय संतुलन पर आधारित है, जिसमें वह किसी एक खेमे में पूरी तरह झुकने के बजाय सभी पक्षों से संबंध बना रहा है।
5. भविष्य की दिशा
यदि रूस-चीन के साथ आर्थिक संबंध और गहरे होते हैं तो भारत की व्यापारिक प्राथमिकताओं और निवेश नीतियों में राज्य-नियंत्रित मॉडल की कुछ झलकें आ सकती हैं।
लेकिन लोकतांत्रिक ढांचे और बहुदलीय राजनीति के चलते भारत का पूरी तरह किसी कम्युनिस्ट मॉडल की ओर जाना संभव नहीं दिखता।
आने वाले वर्षों में भारत का रुझान "मिश्रित आर्थिक मॉडल" की ओर और भी स्पष्ट हो सकता है — जिसमें पश्चिमी तकनीक और पूंजी के साथ-साथ पूर्वी ऊर्जा व रक्षा सहयोग भी शामिल होगा।
भारत का रूस और चीन की ओर बढ़ता आर्थिक झुकाव विचारधारा से अधिक रणनीतिक विवेक और व्यावहारिक राजनीति का परिणाम है। सत्ता पार्टी की मूल विचारधारा में बड़े बदलाव के बजाय यह वैश्विक शक्ति-संतुलन में भारत की "मल्टी-अलाइनमेंट" नीति का हिस्सा है।
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