युवा जनप्रतिनिधियों की नई लहर: उत्तराखंड के विकास की उम्मीद या बाज़ारवाद की चाल?
युवा जनप्रतिनिधियों की नई लहर: उत्तराखंड के विकास की उम्मीद या बाज़ारवाद की चाल?
उत्तराखंड के पंचायती और स्थानीय निकाय चुनावों में जब 20-21 साल के युवा चेहरों ने मैदान में उतरना शुरू किया तो कई लोगों को यह लोकतंत्र की ताजगी और नई ऊर्जा का संकेत लगा। युवा जनप्रतिनिधियों का आना अपने आप में एक स्वागतयोग्य परिवर्तन है — क्योंकि ये वे लोग हैं जो डिजिटल युग में पले-बढ़े हैं, जिनके पास नए विचार, ऊर्जा और समाज को देखने का नया दृष्टिकोण है।
लेकिन सवाल सिर्फ इतना नहीं कि युवा राजनीति में आ रहे हैं — असली सवाल है कि वे किस दिशा में सोचते हैं?
क्या वे गांवों के सूने आंगनों को फिर से आबाद करने आए हैं या अपने राजनीतिक करियर के नाम पर कोटद्वार, देहरादून, ऋषिकेश, रामनगर और हल्द्वानी की जमीनों की कीमतें बढ़ाने का नया नेटवर्क बनेंगे?
पहाड़ के लिए सोचने वाला युवा चाहिए, न कि पॉलिटिकल ब्रोकर्स
अगर ये युवा जनप्रतिनिधि वाकई पहाड़ की जनसंख्या पलायन, बेरोज़गारी, खेती की बर्बादी, स्कूल और अस्पताल की दुर्दशा जैसे मुद्दों पर काम करने को तैयार हैं, तो ये राजनीति एक आंदोलन का रूप ले सकती है। वरना राजनीति सिर्फ एक बाज़ार बनकर रह जाएगी जहां जमीन, योजनाएं और सत्ता — सब बिकाऊ होंगे।
अविवाहित युवा जनप्रतिनिधि युवतियों के लिए विशेष अपील
आज जब कई युवा महिलाएं भी ग्राम प्रधान, बीडीसी, जिला पंचायत सदस्य जैसे पदों पर निर्वाचित हो रही हैं, तब उनके लिए यह एक ऐतिहासिक मौका है — वे सिर्फ राजनीतिक भागीदारी नहीं कर रहीं, बल्कि एक नई सामाजिक संस्कृति भी गढ़ सकती हैं।
यदि ये युवा महिला जनप्रतिनिधि अपने कार्यकाल के दौरान विवाह से दूर रहकर स्वयं को पूर्ण रूप से गांव और विकास को समर्पित करें — तो वे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक आदर्श बनेंगी। क्योंकि उत्तराखंड की सामाजिक वास्तविकता ये है कि विवाह के बाद महिला की राजनीतिक स्वतंत्रता कई बार सीमित हो जाती है। इस कारण यदि कोई युवती पहले जनसेविका और फिर व्यक्तिगत जीवन में संतुलन लाए — तो यह समाज के लिए भी एक प्रेरणा होगी।
विकास या दिखावा?
युवाओं के लिए यह समय छोटे-छोटे जनहित कार्यों से शुरुआत करने का है — जैसे:
गाँव में डिजिटल शिक्षा केंद्र खोलना
नशामुक्ति अभियान चलाना
स्वच्छता और महिला सुरक्षा पर ध्यान देना
खेती-बाड़ी और जल-संरक्षण में नई तकनीकों को लाना
अगर ये युवा सिर्फ सेल्फी, सोशल मीडिया फोटो और ईंट-पत्थर वाले लोकार्पण में व्यस्त रहेंगे, तो वे भी पुराने नेताओं की तरह ही बोलते ज्यादा, करते कम बन जाएंगे।
निष्कर्ष
उत्तराखंड में उभरे युवा जनप्रतिनिधि इस दौर के "बदलाव के वाहक" हो सकते हैं — बशर्ते वे राजनीति को सामाजिक सेवा का माध्यम बनाएं, न कि निजी महत्वाकांक्षा का। और अगर कुछ अविवाहित महिला जनप्रतिनिधि विवाह के बजाय सेवा को प्राथमिकता देकर गांवों में अपने कर्तव्यों का पालन करती हैं — तो वे आने वाली पीढ़ियों की दिशा बदल सकती हैं।
आज उत्तराखंड को नेताओं की नहीं, नेताओं जैसे युवा समाजसेवियों की ज़रूरत है।
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