✍️ सब्र की ताक़त और सताने वालों की औक़ात
✍️ सब्र की ताक़त और सताने वालों की औक़ात
हम अक्सर मान लेते हैं कि ताक़त का मतलब है ऊँची आवाज़, गुस्सा, धमकी या दबदबा। लेकिन असली ताक़त इनमें से किसी में नहीं, बल्कि सब्र में छुपी होती है।
यही कारण है कि कहा गया है –
"जिन लोगों को सब्र करने की आदत पड़ जाती है, सताने वालों की औक़ात दो कोड़ी की रह जाती है।"
सब्र: एक आंतरिक शक्ति
सब्र करना किसी की कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी बहादुरी है। सब्र वह ढाल है जो हमें जल्दबाज़ी और ग़लत फैसलों से बचाती है। धैर्य रखने वाला व्यक्ति भीतर से इतना मजबूत हो जाता है कि किसी भी विपत्ति या अन्याय का सामना कर सके।
सताने वाले क्यों हार जाते हैं?
इतिहास उठाकर देख लीजिए—
जो शासक जनता को दबाते रहे, उनका अंत शर्मनाक हुआ।
जो लोग दूसरों को तंग करते रहे, वे समय के साथ गुमनाम हो गए।
और जो सब्र से सच्चाई के रास्ते पर चलते रहे, वे समाज की नज़रों में अमर हो गए।
सताने वाला चाहे आज शक्तिशाली दिखे, लेकिन सब्र रखने वाले इंसान के सामने उसकी औक़ात आखिरकार "दो कोड़ी" की रह जाती है।
सब्र और न्याय
यह भी सच है कि सब्र का अर्थ हमेशा चुप रहना नहीं है। सब्र का मतलब है सही समय का इंतज़ार करना और फिर न्याय के लिए खड़े होना।
महात्मा गांधी से लेकर दुनिया के हर बड़े परिवर्तनकारी नेता तक, सबने सब्र को ही अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया।
आज के समाज के लिए संदेश
सब्र हमें भीतर से मजबूत और आत्मनिर्भर बनाता है।
सताने वालों की ताक़त अस्थायी होती है, लेकिन सब्र करने वालों की शक्ति स्थायी होती है।
समाज में बदलाव हमेशा उन्हीं ने लाया, जिन्होंने अन्याय सहकर भी सही समय पर सही कदम उठाया।
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निष्कर्ष
असली ताक़त वही है जो सब्र से आती है। जिनके पास धैर्य है, उनके सामने सताने वालों की औक़ात दो कौड़ी से ज्यादा नहीं रहती।
सब्र केवल इंतज़ार करने की आदत नहीं, बल्कि न्याय और बदलाव की बुनियाद है।
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