*"समाज में रहना आसान है, समाज को अपने भीतर जीना कठिन।"* कविता by दिनेश पाल सिंह गुसाईं
*"समाज में रहना आसान है,
समाज को अपने भीतर जीना कठिन।"*
** कविता**
तुम्हें भीड़ में खड़ा कर दूँ,
तो तुम समाज के हिस्से हो जाओगे,
पर जब तक भीतर संवेदना न उतरे,
तब तक तुम बस भीड़ के इंसान हो।
नियम किताबों में लिखे जा सकते हैं,
पर आत्मा में नहीं ठोके जा सकते,
संस्कार बीज हैं—
जो केवल भीतर की मिट्टी में अंकुरित होते हैं।
समाज बाहर की सड़क है,
पर असली सफ़र भीतर चलता है,
और जो इस भीतर के सफ़र को पूरा कर ले,
वही सच्चा सामाजिक प्राणी है।
@ दिनेश
Comments
Post a Comment