दो बेटे एक कहानी के रूप में



किसी गाँव में एक वृद्ध पिता अपने दो बेटों के साथ रहता था। वह ईमानदारी और मेहनत में विश्वास रखने वाला व्यक्ति था, लेकिन उसके दोनों बेटे एक-दूसरे से बिल्कुल अलग थे।

बड़ा बेटा - नालायक

बड़े बेटे रमेश ने पढ़ाई में औसत प्रदर्शन किया, लेकिन किसी तरह उसने एक सरकारी नौकरी पा ली। सरकारी दफ्तर में बैठकर उसे जनता की सेवा करनी थी, लेकिन वह अपने कर्तव्यों से विमुख हो गया।

वह बिना रिश्वत के कोई काम नहीं करता था।

लोग उसकी मेज के चक्कर लगाते रहते, लेकिन जब तक उसकी जेब गर्म नहीं होती, वह किसी की फाइल आगे नहीं बढ़ाता।

उसे सरकार से वेतन तो मिलता था, लेकिन वह इसे अपना अधिकार समझता और ऊपर से रिश्वत लेकर अपनी कमाई को दोगुना कर लेता।


गाँव के लोग उसे कोसते, लेकिन उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती। उसे लगता कि उसने जीवन में सफलता हासिल कर ली है, क्योंकि उसके पास पैसा था, बड़ी गाड़ी थी, और ऊँची पहचान थी।

छोटा बेटा - लायक

छोटा बेटा सुरेश अपने हाथों की मेहनत में विश्वास करता था। उसने खेती और स्थानीय उद्योग को अपनाया।

वह दिनभर खेतों में पसीना बहाता और जैविक खेती से बढ़िया फसल उगाता।

अपनी उपज को सीधे ग्राहकों तक पहुँचाने के लिए उसने एक छोटा व्यवसाय शुरू किया।

धीरे-धीरे उसका काम बढ़ा, और उसने गाँव के कुछ लोगों को भी अपने साथ रोजगार दिया।

वह सरकार को ईमानदारी से कर (टैक्स) देता और अपने देश की अर्थव्यवस्था में योगदान करता।


उसके काम का असर गाँव पर भी दिखने लगा। लोग उसकी प्रशंसा करते और उसका सम्मान करते।

पिता का न्याय

एक दिन पिता ने दोनों बेटों को बुलाया और कहा,
"एक बेटा मेहनत कर रहा है, ईमानदारी से कमाता है, और लोगों की सेवा कर रहा है। दूसरा वह है जो लोगों की गाढ़ी कमाई को लूटता है और अपने पद का दुरुपयोग करता है।"

फिर उन्होंने रमेश से पूछा, "अगर सभी लोग तुम्हारी तरह रिश्वतखोर बन जाएँ, तो क्या यह देश चल पाएगा?"
रमेश सिर झुकाकर खड़ा रहा।

इसके बाद उन्होंने सुरेश से कहा, "अगर सभी लोग मेहनत और ईमानदारी से काम करें, तो देश आगे बढ़ेगा। तुम जैसे लोग ही असली रीढ़ हैं जो अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हैं।"

पिता ने अपनी संपत्ति सुरेश को सौंप दी और रमेश से कहा,
"अगर तुम्हें वाकई सम्मान और धन चाहिए, तो अपनी सोच बदलो और सच्ची सेवा करो, नहीं तो एक दिन तुम्हारी रिश्वत की कमाई भी तुम्हारे लिए बोझ बन जाएगी।"

रमेश को अपनी गलती का अहसास हुआ, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। गाँव के लोग अब उसे घृणा की नजर से देखते थे, जबकि सुरेश का नाम गर्व से लिया जाता था।

शिक्षा:

"धन वही सार्थक है जो ईमानदारी और परिश्रम से कमाया जाए। रिश्वत की कमाई एक दिन सम्मान और आत्म-संतोष दोनों छीन लेती है।"


Comments

Popular posts from this blog

उत्तराखंड का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) वित्तीय वर्ष 2024-25

कृषि व्यवसाय और ग्रामीण उद्यमिता विकास