जलवायु परिवर्तन और नई विश्व संरचना (New World Order & Climate Change)
जलवायु परिवर्तन 21वीं सदी की सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती बन चुका है, और यह नए विश्व व्यवस्था (New World Order) को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। विभिन्न देश और संगठन इस पर नियंत्रण पाने के लिए नए गठबंधन बना रहे हैं और संसाधनों की होड़ मची हुई है।
1. नई विश्व व्यवस्था में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
A. शक्ति संतुलन में बदलाव
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकसित देश ग्रीन टेक्नोलॉजी और वित्तीय सहायता का उपयोग करके अपना प्रभुत्व बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
विकासशील देश (भारत, ब्राजील, इंडोनेशिया, अफ्रीकी राष्ट्र) सस्टेनेबल विकास के लिए अलग-अलग रणनीतियाँ बना रहे हैं।
B. कार्बन क्रेडिट और आर्थिक नियंत्रण
पश्चिमी देश कार्बन क्रेडिट सिस्टम का उपयोग करके व्यापार और निवेश की नई दिशा तय कर रहे हैं।
COP सम्मेलनों (जैसे COP28) में विकसित देश विकासशील देशों पर नए नियम लागू करने का दबाव बना रहे हैं, जिससे आर्थिक असमानता बढ़ सकती है।
चीन और भारत जैसे देश अपने हरित ऊर्जा कार्यक्रमों के ज़रिए खुद को जलवायु नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित कर रहे हैं।
C. प्राकृतिक संसाधनों पर नई होड़
जलवायु परिवर्तन के कारण दुर्लभ खनिज (Rare Earth Minerals), ताजा पानी, और कृषि योग्य भूमि की मांग बढ़ रही है।
अमेरिका, चीन, और यूरोप नवीन ऊर्जा स्रोतों (सोलर, हाइड्रोजन, बैटरी टेक्नोलॉजी) पर नियंत्रण पाने की कोशिश कर रहे हैं।
आर्कटिक क्षेत्र की बर्फ पिघलने से नए व्यापार मार्ग और खनिज संसाधन उपलब्ध हो रहे हैं, जिन पर रूस और पश्चिमी देश अपना अधिकार जताने की होड़ में हैं।
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2. वैश्विक पहल और गठबंधन
A. पश्चिमी देशों की रणनीति
Net Zero Goals: अमेरिका और यूरोपीय संघ 2050 तक कार्बन-न्यूट्रल (Net Zero) बनने की योजना बना रहे हैं।
ग्रीन फाइनेंस: IMF, World Bank, और यूरोपीय बैंक जलवायु अनुकूल परियोजनाओं को वित्तीय सहायता दे रहे हैं।
EU का Carbon Border Adjustment Mechanism (CBAM): यह नीति अन्य देशों पर कार्बन टैक्स लगाने की कोशिश कर रही है, जिससे भारतीय और चीनी उत्पाद महंगे हो सकते हैं।
B. BRICS और विकासशील देशों की रणनीति
भारत: राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन, सोलर एनर्जी, और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के माध्यम से अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है।
चीन: इलेक्ट्रिक वाहन (EV) और सोलर पैनल निर्माण में सबसे आगे है।
अफ्रीकी देश: जलवायु वित्तपोषण (Climate Finance) के लिए संयुक्त राष्ट्र और IMF पर दबाव बना रहे हैं।
C. नए ऊर्जा गठबंधन
OPEC+ से हटकर ग्रीन एनर्जी ग्रुप: तेल उत्पादक देशों का एक नया गठबंधन हाइड्रोजन और सौर ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।
Rare Earth Minerals पर नियंत्रण: अमेरिका, जापान, और यूरोप चीन के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए अपने खनिज स्रोत विकसित करने में लगे हैं।
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3. भारत की भूमिका और संभावनाएँ
A. वैश्विक नेतृत्व की संभावना
भारत COP सम्मेलनों में एक मजबूत आवाज़ बना हुआ है और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कार्रवाई में सक्रिय भागीदार है।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के जरिए भारत दुनिया को सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा देने की दिशा में काम कर रहा है।
भारत का National Green Hydrogen Mission 2040 तक हाइड्रोजन ईंधन में आत्मनिर्भर बनने की योजना बना रहा है।
B. नई हरित अर्थव्यवस्था में भारत की रणनीति
भारत 2030 तक 500 GW नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य लेकर चल रहा है।
Make in India और PLI स्कीम से भारत सोलर पैनल और बैटरी निर्माण में चीन को टक्कर दे सकता है।
EV इंडस्ट्री में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिससे भारत सस्टेनेबल मोबिलिटी का हब बन सकता है।
C. भारत के लिए चुनौतियाँ
पश्चिमी देशों द्वारा कार्बन टैक्स और व्यापार प्रतिबंध भारत के निर्यात को प्रभावित कर सकते हैं।
खनिज संसाधनों की कमी: भारत को बैटरी उत्पादन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी।
जलवायु वित्त पोषण (Climate Finance): भारत को हरित ऊर्जा परियोजनाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहायता की जरूरत होगी।
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4. निष्कर्ष: क्या नया विश्व जलवायु के आधार पर बनेगा?
जलवायु परिवर्तन अब केवल पर्यावरणीय मुद्दा नहीं बल्कि भू-राजनीतिक और आर्थिक शक्ति संतुलन का केंद्र बन चुका है।
पश्चिमी देश नियम बनाकर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं, जबकि भारत और अन्य विकासशील देश ऊर्जा स्वतंत्रता और तकनीकी नवाचार के माध्यम से नेतृत्व हासिल करना चाहते हैं।
अगले 20 वर्षों में ग्रीन एनर्जी, कार्बन क्रेडिट, और दुर्लभ खनिजों पर नियंत्रण रखने वाले देश ही नई विश्व व्यवस्था में अग्रणी भूमिका निभाएंगे।
भारत को क्या करना चाहिए?
1. ग्रीन टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनना: सोलर, हाइड्रोजन, और बैटरी निर्माण में निवेश बढ़ाना।
2. वैश्विक मंचों पर नेतृत्व: BRICS, SCO, और G20 जैसे समूहों में भारत को जलवायु वित्त पोषण और व्यापारिक नियमों पर अपनी बात मजबूती से रखनी होगी।
3. Rare Earth Minerals पर रणनीति: खनिज संसाधनों की आपूर्ति के लिए अफ्रीकी और दक्षिण अमेरिकी देशों के साथ साझेदारी करनी होगी।
4. सौर और पवन ऊर्जा में वैश्विक केंद्र बनना: इससे भारत न केवल अपनी ऊर्जा जरूरतें पूरी करेगा बल्कि ग्रीन एनर्जी निर्यातक भी बन सकता है।
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