Multipolar सत्ता ध्रुवीकरण और New World Order
Multipolar World (बहुध्रुवीय विश्व) का अर्थ है एक ऐसी वैश्विक व्यवस्था, जहाँ सत्ता और प्रभाव केवल एक देश (जैसे अमेरिका) या दो देशों (जैसे शीत युद्ध के दौरान अमेरिका-रूस) तक सीमित न होकर कई शक्तिशाली देशों और समूहों के बीच वितरित हो।
New World Order में Multipolar System कैसे काम करेगा?
1. प्रमुख शक्तियों का उदय
अमेरिका (पश्चिमी प्रभाव)
चीन (विस्तारवादी रणनीति और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव)
रूस (यूरो-एशियाई प्रभाव)
यूरोपीय संघ (EU) (नवीन आर्थिक और राजनीतिक रणनीति)
भारत (उभरती शक्ति, वैश्विक मध्यस्थ)
ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया जैसे क्षेत्रीय महाशक्तियाँ
2. प्रमुख विशेषताएँ
संयुक्त राष्ट्र और G20 जैसे प्लेटफॉर्म का महत्व बढ़ेगा।
एकदेशीय (Unipolar - अमेरिका केंद्रित) व्यवस्था कमजोर होगी।
NATO और BRICS जैसे गठजोड़ों का प्रभाव बढ़ेगा।
क्षेत्रीय संगठन (QUAD, SCO, ASEAN) नई भूमिका निभाएंगे।
3. Multipolar World में प्रमुख परिवर्तन
वैश्विक डॉलर वर्चस्व का अंत?
चीन-रूस जैसे देश डॉलर से हटकर स्थानीय मुद्राओं में व्यापार कर रहे हैं।
डिजिटल करेंसी (CBDC) और क्रिप्टो नई वित्तीय शक्ति बन सकती हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और टेक्नोलॉजी वर्चस्व
अमेरिका, चीन, और यूरोप के बीच AI, 5G, और चिप टेक्नोलॉजी की होड़।
Quantum Computing और साइबर सुरक्षा नए शक्ति केंद्र बन सकते हैं।
रक्षा और सैन्य गठबंधन
अमेरिका का NATO और AUKUS पर जोर।
रूस-चीन का SCO और BRICS को मजबूत करना।
भारत की स्वतंत्र रक्षा नीति और आत्मनिर्भर रणनीति।
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और संसाधनों पर नियंत्रण
चीन और पश्चिमी देशों के बीच रेयर अर्थ मिनरल्स और चिप उत्पादन की प्रतिस्पर्धा।
भारत और रूस जैसे देश ऊर्जा (तेल-गैस) में नए मार्ग खोल रहे हैं।
भारत की भूमिका एक Multipolar World में
भारत गुटनिरपेक्ष नीति (Non-Aligned Movement 2.0) को बढ़ावा दे सकता है।
मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, आत्मनिर्भर भारत जैसी पहल से भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में प्रमुख भूमिका निभा सकता है।
भारत-Russia, भारत-अमेरिका, भारत-EU, भारत-अफ्रीका जैसी बहुआयामी कूटनीति इसे विश्व मंच पर संतुलित शक्ति बनाएगी।
BRICS और QUAD जैसे संगठनों में भारत का बढ़ता प्रभाव इसे प्रमुख शक्ति बना सकता है।
निष्कर्ष
"New World Order" अब Multipolar सिस्टम की ओर बढ़ रहा है, जहाँ शक्ति का संतुलन केवल पश्चिमी देशों (अमेरिका-यूरोप) तक सीमित न होकर एशिया, अफ्रीका, और लैटिन अमेरिका में भी फैलेगा। भारत इसमें एक महत्वपूर्ण ध्रुव बन सकता है, जो अमेरिका-चीन-रूस के बीच एक मध्यस्थ और स्वतंत्र शक्ति की भूमिका निभाएगा।
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