क्या बड़े अखबारों या मीडिया संस्थानों के प्रतिनिधि अक्सर खुद को अधिक प्रभावशाली मानते हैं और छोटे या मँझोले अखबारों के पत्रकारों को कमतर आंकते हैं?

 हां बड़े अखबारों या मीडिया संस्थानों के प्रतिनिधि अक्सर खुद को अधिक प्रभावशाली मानते हैं और छोटे या मँझोले अखबारों के पत्रकारों को कमतर आंकते हैं। यह प्रवृत्ति न केवल प्रेस क्लबों में बल्कि प्रेस कॉन्फ्रेंस, सरकारी कार्यक्रमों, और अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी देखी जाती है।

इसका मुख्य कारण क्या है?

1. मीडिया संस्थानों का प्रभाव – बड़े अखबारों और चैनलों की व्यापक पहुँच होती है, जिससे उनके पत्रकारों को सत्ता प्रतिष्ठानों और कॉरपोरेट्स से अधिक तवज्जो मिलती है।


2. विज्ञापन और फंडिंग – छोटे और मँझोले अखबारों को आमतौर पर विज्ञापन और संसाधनों की कमी होती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है।


3. नेटवर्किंग और अवसर – बड़े मीडिया हाउस के पत्रकारों को एक्सक्लूसिव इंटरव्यू, इवेंट्स और सरकारी बैठकों में अधिक अवसर मिलते हैं, जिससे वे खुद को ‘विशेष’ मानने लगते हैं।


4. प्रेस क्लबों में गुटबंदी – कई प्रेस क्लबों में बड़े मीडिया हाउस के पत्रकार ही हावी रहते हैं, जिससे छोटे पत्रकारों को समान अवसर नहीं मिलते।



समाधान क्या हो सकता है?

स्वतंत्र और छोटे पत्रकारों को संगठित होना होगा ताकि वे अपनी स्थिति मजबूत कर सकें।

डिजिटल मीडिया का अधिकतम उपयोग करें – आज डिजिटल और सोशल मीडिया ने पत्रकारिता को लोकतांत्रिक बना दिया है। एक स्वतंत्र पत्रकार भी बड़े अखबारों के मुकाबले प्रभावशाली रिपोर्टिंग कर सकता है।

प्रेस क्लबों में समावेशी नीतियाँ – प्रेस क्लबों को सभी पत्रकारों को बराबरी का मंच देना चाहिए, न कि केवल बड़े संस्थानों के पत्रकारों को।


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