कार्बन क्रेडिट और वैश्विक व्यापार में भारत की भूमिका



कार्बन क्रेडिट (Carbon Credits) एक ऐसी प्रणाली है जो कंपनियों और देशों को उनके कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emissions) को नियंत्रित करने और व्यापार करने की अनुमति देती है। यह जलवायु परिवर्तन और व्यापारिक संतुलन को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक बन चुका है।

1. कार्बन क्रेडिट क्या है और यह कैसे काम करता है?

A. मूल अवधारणा

एक कार्बन क्रेडिट = 1 टन CO₂ उत्सर्जन की अनुमति

कंपनियाँ और देश अपने उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त क्रेडिट खरीद सकते हैं या अपना बचा हुआ क्रेडिट बेच सकते हैं।

यदि कोई उद्योग कार्बन उत्सर्जन को कम करता है, तो वह अतिरिक्त क्रेडिट बेचकर लाभ कमा सकता है।

यदि कोई कंपनी अपने निर्धारित कार्बन सीमा से अधिक उत्सर्जन करती है, तो उसे बाज़ार से क्रेडिट खरीदना पड़ता है।


B. प्रमुख वैश्विक कार्बन क्रेडिट बाज़ार

1. EU Emissions Trading System (EU-ETS): यूरोपीय संघ द्वारा संचालित, सबसे बड़ा बाजार।


2. Chinese National Carbon Market: चीन का नया कार्बन ट्रेडिंग सिस्टम।


3. California Cap-and-Trade Program: अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य का कार्यक्रम।


4. Voluntary Carbon Market (VCM): निजी कंपनियों और संगठनों के लिए खुला बाज़ार।




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2. कार्बन क्रेडिट और वैश्विक व्यापार

A. विकसित देशों की रणनीति

यूरोप और अमेरिका ने Carbon Border Adjustment Mechanism (CBAM) लागू किया है, जो कार्बन टैक्स के रूप में काम करेगा।

यदि कोई देश या कंपनी उच्च कार्बन उत्सर्जन वाली वस्तुएँ (जैसे स्टील, सीमेंट, केमिकल्स) निर्यात करता है, तो उसे अतिरिक्त कर देना होगा।

इसका लक्ष्य विकसित देशों के उद्योगों को प्रतिस्पर्धी बनाए रखना और ग्रीन एनर्जी में निवेश को बढ़ावा देना है।


B. विकासशील देशों पर प्रभाव

भारत, चीन, और ब्राज़ील जैसे देशों को अपने उत्पादों को ग्रीन प्रमाणपत्र (Green Certification) के तहत बेचने के लिए कार्बन क्रेडिट सिस्टम को अपनाना पड़ेगा।

भारत के स्टील, सीमेंट, टेक्सटाइल, और फार्मा उद्योग पर इस नीति का सीधा प्रभाव पड़ सकता है।

यदि भारत कार्बन न्यूट्रल नहीं बना, तो उसके उत्पाद महंगे हो सकते हैं और निर्यात प्रभावित हो सकता है।



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3. भारत की रणनीति और अवसर

A. कार्बन क्रेडिट से भारत को कैसे लाभ हो सकता है?

1. ग्रीन एनर्जी में निवेश:

भारत की सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाएँ बड़े पैमाने पर कार्बन क्रेडिट कमा सकती हैं।

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के ज़रिए भारत वैश्विक सौर ऊर्जा बाजार में अग्रणी बन सकता है।



2. कृषि और जंगलों से कार्बन क्रेडिट:

Cooperative Farming और Agroforestry के माध्यम से भारत क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर में निवेश कर सकता है।

भारतीय वन (Forests) कार्बन सिंक के रूप में काम कर सकते हैं, जिससे अतिरिक्त क्रेडिट बेचा जा सकता है।



3. कार्बन ट्रेडिंग मार्केट का निर्माण:

भारत को एक राष्ट्रीय कार्बन ट्रेडिंग सिस्टम शुरू करना चाहिए, जिससे भारतीय कंपनियाँ अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में क्रेडिट बेच सकें।

BSE और NSE को कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म शुरू करना चाहिए।




B. भारत के लिए चुनौतियाँ

विकसित देश कार्बन टैक्स और ट्रेड नीतियों से विकासशील देशों को नियंत्रित कर सकते हैं।

भारतीय कंपनियों को स्वच्छ ऊर्जा में निवेश के लिए वित्तीय मदद की जरूरत होगी।

कार्बन क्रेडिट सिस्टम भ्रष्टाचार और गलत क्रेडिट क्लेमिंग से प्रभावित हो सकता है।



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4. निष्कर्ष: भारत को क्या करना चाहिए?

1. ग्रीन एनर्जी और इलेक्ट्रिक वाहनों में निवेश बढ़ाना


2. राष्ट्रीय कार्बन ट्रेडिंग सिस्टम शुरू करना


3. स्टील, सीमेंट और कृषि में कार्बन न्यूट्रल तकनीकों को अपनाना


4. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर CBAM जैसी नीतियों के खिलाफ मजबूत कूटनीति अपनाना




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