भारत में पत्रकारों की रक्षा और सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम



पत्रकारों को उनकी रिपोर्टिंग के दौरान धमकी, हमले, गिरफ्तारी, और गलत मुकदमों का सामना करना पड़ता है। इसे देखते हुए सरकार, न्यायपालिका और विभिन्न संगठनों ने पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।


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1. कानूनी और संवैधानिक संरक्षण

(A) प्रेस की स्वतंत्रता का संवैधानिक अधिकार

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत मीडिया की आजादी की रक्षा करता है।

हालांकि, अनुच्छेद 19(2) में कुछ प्रतिबंध हैं, जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा, शालीनता, मानहानि और सार्वजनिक व्यवस्था।


(B) भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के प्रावधान

BNS धारा 106, 107 (मॉब लिंचिंग) – पत्रकारों पर भीड़ द्वारा हमले के लिए आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक का प्रावधान।

BNS धारा 111(2) (धमकी और हमले के खिलाफ सुरक्षा) – पत्रकारों को धमकाने या हिंसा करने पर 3 से 7 साल तक की सजा।

BNS धारा 195 (लोक सेवकों की तरह सुरक्षा) – कुछ मामलों में पत्रकारों को सरकारी अधिकारियों की तरह सुरक्षा देने की वकालत की गई है।


(C) मानहानि और फेक न्यूज से सुरक्षा

BNS धारा 357 (मानहानि) – यदि कोई झूठा मानहानि केस पत्रकार के खिलाफ दर्ज कराया जाता है, तो वह रद्द किया जा सकता है।

BNS धारा 166(4) (गलत सूचना पर कार्रवाई) – यदि पत्रकारों पर जानबूझकर झूठे आरोप लगाए जाते हैं, तो सख्त सजा हो सकती है।



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2. विशेष कानून और राज्य सरकारों द्वारा पहल

(A) पत्रकार सुरक्षा कानून (Journalist Protection Laws)

महाराष्ट्र पत्रकार संरक्षण कानून, 2017 – महाराष्ट्र पहला राज्य है जिसने पत्रकारों पर हमले को गैर-जमानती अपराध घोषित किया।

कर्नाटक और छत्तीसगढ़ – पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने की घोषणा की।

राजस्थान पत्रकार संरक्षण बिल, 2023 – पत्रकारों पर हमले के मामलों में सख्त सजा का प्रावधान किया गया।


(B) प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI)

स्वतंत्र संस्था जो पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा करती है।

अगर किसी पत्रकार को सरकारी दमन या झूठे मामलों का सामना करना पड़े, तो PCI हस्तक्षेप कर सकती है।



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3. न्यायपालिका द्वारा संरक्षण

भारतीय न्यायपालिका ने कई मामलों में पत्रकारों की स्वतंत्रता की रक्षा की है।

अर्णब गोस्वामी केस (2020) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्रकारों की गिरफ्तारी उनकी स्वतंत्रता के खिलाफ है।

सिद्धिक कप्पन केस (2023) – यूपी सरकार द्वारा गिरफ्तार किए गए पत्रकार को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी और प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा की।



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4. अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानक और संगठनों की पहल

(A) संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रेस की सुरक्षा पर विशेष प्रस्ताव

UNESCO और UNHRC ने पत्रकारों की सुरक्षा और मीडिया की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए सिफारिशें दी हैं।


(B) रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) और कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ)

यदि किसी पत्रकार को सरकार या माफिया से खतरा हो, तो यह संगठन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मामला उठाते हैं।



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5. यदि किसी पत्रकार को धमकी या हमला हो तो क्या करें?

स्थानीय पुलिस में FIR दर्ज कराएं (BNS धारा 111(2), 106, 195 के तहत)।

राज्य मानवाधिकार आयोग या प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया में शिकायत करें।

सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करें।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रकार सुरक्षा संगठनों से संपर्क करें।



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निष्कर्ष

हालांकि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कुछ कानूनी और संस्थागत कदम उठाए गए हैं, लेकिन अब भी पत्रकारों पर हमले, धमकी और झूठे मुकदमे बड़ी समस्या बने हुए हैं।
जरूरत है कि भारत में एक राष्ट्रीय स्तर पर "पत्रकार सुरक्षा कानून" बनाया जाए, जिससे पत्रकारों को स्वतंत्र और सुरक्षित तरीके से काम करने का अधिकार मिले।


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