उत्तराखंड में **नदियों, जल, जंगल और जमीन (जल-जंगल-जमीन या 3J)** पर **किसका अधिकार है?**
उत्तराखंड में **नदियों, जल, जंगल और जमीन (जल-जंगल-जमीन या 3J)** पर **किसका अधिकार है?** — यह सवाल मूल रूप से **“जन अधिकार बनाम राज्य नियंत्रण”** से जुड़ा है। उत्तराखंड जैसे पहाड़ी और आदिवासी मूल की सांस्कृतिक भूमि में यह प्रश्न और भी अधिक संवेदनशील और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है।
---
## 🔹 उत्तराखंड में जल-जंगल-जमीन पर अधिकार: कौन मालिक?
| संसाधन | किसके अधिकार में? | कानूनी/नीति संदर्भ |
| ------------------------------- | ----------------------------------------------------------------- | -------------------------------------------------------------------------------------------- |
| **नदियाँ और जल स्रोत** | सरकार (राज्य की सार्वजनिक संपत्ति), लेकिन उपयोग का अधिकार जनता को | भारतीय नदियाँ सार्वजनिक संपत्ति मानी जाती हैं, लेकिन ‘Doctrine of Public Trust’ लागू होता है |
| **जंगल** | अधिकतर वन भूमि सरकार के अधीन – वन विभाग के अंतर्गत | भारतीय वन अधिनियम 1927, वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 |
| **भूमि** | निजी, ग्राम समाज, सरकारी व वन भूमि — तीनों तरह की मिलती है | उत्तराखंड भू-राजस्व अधिनियम, ग्राम पंचायत कानून |
| **चारागाह, नदी किनारे की जमीन** | ज़्यादातर “ग्राम समाज” या “सरकारी ज़मीन” मानी जाती है | ग्राम समाज/सरकारी ज़मीन को आमजन उपयोग करते हैं, लेकिन सरकार के पास अधिकार होता है |
---
## 🔸 परंपरागत अधिकार बनाम सरकारी नियंत्रण:
**1. परंपरागत हक (Customary Rights):**
उत्तराखंड में कई गांवों में पीढ़ियों से लोग:
* जंगल से लकड़ी, चारा, जड़ी-बूटी लाते रहे हैं,
* नदियों से सिंचाई और पीने का पानी लेते रहे हैं,
* सामूहिक चारागाह, और गांव के तालाब/गाड़-गधेरों पर नियंत्रण रखते रहे हैं।
**➡ परंतु इन अधिकारों को अब “कानूनी हक” नहीं बल्कि “सरकारी अनुमति” में बदल दिया गया है।**
---
## 🔸 क्या सरकार मालिक है?
**हां और नहीं, दोनों।**
### ✅ हां – सरकार का “कानूनी नियंत्रण”:
* सरकार **राज्य की सार्वजनिक संपत्ति** के रूप में जल-जंगल-जमीन को नियंत्रित करती है।
* वन विभाग **वन भूमि का प्रबंधन** करता है, जिसमें जनता को प्रवेश या उपयोग के लिए अनुमति लेनी होती है।
* सिंचाई विभाग, जल संस्थान जैसे विभाग नदियों/जल स्रोतों का नियंत्रण करते हैं।
### ❌ नहीं – जनता का “सहभागी अधिकार”:
* **संविधान का अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार)** कहता है कि स्वच्छ जल, पर्यावरण और संसाधनों तक पहुंच जीवन का हिस्सा है।
* **Doctrine of Public Trust** के अनुसार सरकार **सिर्फ ट्रस्टी है, मालिक नहीं** — सरकार का कर्तव्य है कि वह जनता के लिए इन संसाधनों की रक्षा करे, निजीकरण या दोहन न करे।
---
## 🔹 उत्तराखंड में संघर्ष के कारण:
1. **जल स्रोतों का निजीकरण:**
— हाइड्रो प्रोजेक्ट्स, बॉटलिंग प्लांट, पेयजल योजनाओं के नाम पर निजी कंपनियों को जल स्रोत सौंपे जा रहे हैं।
2. **जंगल पर वन विभाग का एकाधिकार:**
— ग्रामीणों को चारा, लकड़ी, फल लेने की अनुमति नहीं मिलती या फाइन लगाया जाता है।
3. **भूमि अधिग्रहण और विस्थापन:**
— विकास के नाम पर ग्रामीणों की ज़मीन ली जा रही है, पर समुचित मुआवजा या पुनर्वास नहीं होता।
4. **नदियों का ‘देवत्व’ छिन रहा है:**
— नदियों को नहरों और सुरंगों में डालकर उनके जैविक और सांस्कृतिक अस्तित्व को नष्ट किया जा रहा है।
---
## 🔹 समाधान और अधिकार की पुनर्प्राप्ति:
| समाधान | विवरण |
| --------------------------------------- | -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- |
| **ग्राम सभा सशक्तिकरण** | PESA कानून की तर्ज पर गांवों को निर्णय का अधिकार दिया जाए |
| **नदी को जीवित इकाई घोषित करना** | जैसे गंगा-यमुना को किया गया, वैसे ही स्थानीय नदियों को अधिकार दिया जाए |
| **जल-जंगल-जमीन पर सामुदायिक ट्रस्ट** | पंचायत/ग्रामसभा स्तर पर रजिस्टर कराकर सामूहिक प्रबंधन |
| **परंपरागत अधिकारों को कानूनी मान्यता** | Customary Rights को दस्तावेजीकृत करके राज्य कानून में शामिल किया जाए |
| **जन आंदोलन** | उत्तराखंड में पहले भी चिपको आंदोलन, टिहरी विस्थापन आंदोलन जैसे उदाहरण मिलते हैं – अब फिर एक नया जन अधिकार आंदोलन ज़रूरी है |
---
## 🔹 निष्कर्ष:
उत्तराखंड में जल-जंगल-जमीन पर **सच्चा अधिकार जनता का है**, लेकिन **कानूनी दस्तावेजों और सरकारी संरचना** ने इस पर नियंत्रण सरकार को दे रखा है।
आज ज़रूरत है कि हम यह मांग करें:
> 🌿 *"सरकार ट्रस्टी है, मालिक नहीं – जल-जंगल-जमीन जनता की धरोहर हैं, निजी नहीं!"*
---
Comments
Post a Comment