"एक राजनेता मानव जाति को दो भागों में विभाजित करता है: उपकरण और दुश्मन"

 सत्ता और राजनीति की एक बहुत ही तीखी, गूढ़ और यथार्थवादी व्याख्या करता है। यह वाक्य न केवल राजनीति के व्यवहारवादी और सत्ता-केंद्रित दृष्टिकोण को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि किस प्रकार राजनीतिक सत्ता में नैतिकता का स्थान अक्सर रणनीति ले लेती है।


---

🔍 विश्लेषण:

1. उपकरण (Tools):

वे लोग, संस्थाएँ या समूह जो राजनेता की सत्ता, छवि और लाभ के लिए उपयोगी हैं।

ये कभी कार्यकर्ता, मीडिया, पार्टी के वफादार, ब्यूरोक्रेसी, या जनता का एक हिस्सा हो सकते हैं।

इनका मानवीकरण नहीं, बल्कि उपयोग होता है — जब तक ज़रूरत है, तब तक साथ; उसके बाद त्याग।


2. दुश्मन (Enemies):

वे लोग जो सवाल करते हैं, विरोध करते हैं, सत्ता को चुनौती देते हैं।

ये विचारधारात्मक विरोधी, स्वतंत्र पत्रकार, सक्रिय नागरिक, या असहमत सहयोगी भी हो सकते हैं।

सत्ता की राजनीति इन्हें खतरे के रूप में देखती है — और इनका चरित्र-हनन, बहिष्कार या दमन सत्ता के लिए सामान्य रणनीति बन जाती है।



---

📜 ऐतिहासिक और दार्शनिक परिप्रेक्ष्य:

निकोलो मैकियावेली (Machiavelli) ने 'राजनीति' को एक नैतिकता से परे कला बताया था, जहाँ परिणाम ही सब कुछ होता है।

कार्ल मार्क्स के अनुसार, सत्ता हमेशा एक वर्ग विशेष की सेवा करती है, बाकी वर्गों को या तो उपयोग करती है या दमन।

चाणक्य ने भी सत्ता में साम, दाम, दंड, भेद के उपयोग को यथार्थ माना था।



---

✍️ इस कथन का विस्तार लेख के रूप में (संक्षिप्त):

> एक राजनेता की दृष्टि में समाज दो वर्गों में सिमट जाता है — उपकरण और दुश्मन। जो उसकी सत्ता, प्रचार और योजनाओं के साथ हैं, वे साधन हैं। और जो सवाल करते हैं, टोकते हैं या विकल्प की मांग करते हैं, वे शत्रु हैं।

यह सोच सत्ता को संवाद और समरसता की जगह रणनीति और विभाजन की ओर ले जाती है। लोकतंत्र जहाँ जनता को भागीदार बनाना चाहिए, वहाँ ऐसे राजनेता उन्हें या तो उपयोगी वस्तु समझते हैं या रोकने योग्य बाधा।

यही वह बिंदु है जहाँ राजनीति, नैतिकता से दूर होकर केवल सत्ता प्रबंधन की तकनीक बन जाती है। इस सोच से बचना ही लोकतंत्र की आत्मा को बचाना है।

Comments

Popular posts from this blog

उत्तराखंड का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) वित्तीय वर्ष 2024-25

कृषि व्यवसाय और ग्रामीण उद्यमिता विकास