जो बीत रहा है वो वक़्त नहीं, जीवन है**
हम अक्सर कहते हैं — “वक़्त बीत रहा है।” घड़ी की सुइयाँ घूमती हैं, दिन रात में ढलते हैं, मौसम बदलते हैं, और जीवन आगे बढ़ता जाता है। पर क्या आपने कभी सोचा है कि जो बीत रहा है, वो सिर्फ "वक़्त" नहीं है — **वो हमारा जीवन है**?
### 1. **समय नहीं, जीवन बह रहा है**
हम यह मानकर चलते हैं कि हमारे पास "वक़्त" है — कल कुछ और करेंगे, अगले साल शुरू करेंगे, रिटायरमेंट के बाद जीएंगे। पर ये कल, ये "बाद में" कभी आता नहीं। हर बीतता हुआ लम्हा हमारे जीवन का हिस्सा है जो **कभी लौटकर नहीं आता**। जब हम समय को यूँ ही जाने देते हैं, तो असल में हम अपने जीवन को फिसलते हुए देख रहे होते हैं।
### 2. **हर लम्हे का मूल्य समझो**
हर सुबह जो सूरज उगता है, हर साँस जो हम लेते हैं, वो एक अवसर है — खुद को जीने का, दूसरों से जुड़ने का, किसी सपने को पूरा करने का। पर अगर हम भागते ही रह गए — तो जीवन बस एक **अनजानी दौड़ बनकर रह जाएगा**, जिसका कोई ठिकाना नहीं होगा।
### 3. **“बिज़ी” रहने की आदत**
आज की दुनिया में "बिज़ी" रहना एक गर्व की बात बन गई है। काम, मोबाइल, मीटिंग्स, सोशल मीडिया — सब कुछ इतना भरा हुआ है कि **जीवन जीने की फुर्सत नहीं**। पर जो लोग हर दिन को एक उपहार की तरह देखते हैं, वो समझते हैं कि जीवन "फुर्सत का नाम" है, "संवेदना का नाम" है, और "सजगता का नाम" है।
### 4. **समय को महसूस करो, सिर्फ काटो नहीं**
घड़ी को देखना और समय काटना आसान है, पर उस समय को जीना एक कला है। वो चाय की चुस्की, बच्चों की मुस्कान, माता-पिता की बातें, गाँव की हवा, पहाड़ की शांति — ये सब क्षण **जीवन की असली पूँजी** हैं।
### 5. **अंत में क्या बचेगा?**
जब जीवन की शाम होगी, तब हम सिर्फ यही याद रखेंगे कि हमने **कितने पल सचमुच जिए**, कितनी बार दिल से हँसे, कितना प्रेम किया, और कहाँ-कहाँ अपनी उपस्थिति को अर्थपूर्ण बनाया।
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**निष्कर्ष:**
वक़्त को “बीतने” मत दो। हर लम्हे को **जीवन की तरह जीयो**। क्योंकि जो बीत रहा है, वो सिर्फ समय नहीं, **तुम्हारा जीवन है**। इसे समझना ही जीवन की सबसे बड़ी जागरूकता है।
**"आज को जी लो, कल कभी आए या न आए।"**
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