शिक्षा: विद्रोह की पहली पाठशाला




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"शिक्षा मूलतः विद्रोही होती है।"
यह कथन ब्राज़ील के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री पाउलो फ्रेरे की है, जिन्होंने शिक्षा को शोषित वर्गों के सशक्तिकरण का सबसे बड़ा औज़ार माना। उनका मानना था कि सच्ची शिक्षा वह है जो हमें सिर्फ आज्ञाकारी नागरिक नहीं बनाती, बल्कि हमें सोचने, सवाल करने और व्यवस्था को चुनौती देने की शक्ति देती है।

शिक्षा: केवल जानकारी नहीं, चेतना का विकास

आज के समय में जब शिक्षा को अक्सर डिग्रियों और नौकरियों तक सीमित कर दिया गया है, फ्रेरे का यह विचार और भी प्रासंगिक हो जाता है। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं है, बल्कि व्यक्ति में ‘संकल्पनात्मक चेतना’ (Critical Consciousness) विकसित करना है — यानी ऐसी चेतना जो सामाजिक अन्याय, असमानता और सत्ता के ढाँचों को पहचान सके और उन्हें बदलने का साहस जुटा सके।

सोचने की तमीज़: शिक्षा की असली ताकत

जब कोई बच्चा स्कूल में जाता है, तो वह केवल गणित, विज्ञान या भाषा नहीं सीखता — वह यह भी सीखता है कि चीज़ों को कैसे देखा जाए। यदि शिक्षा केवल किताबों तक सीमित रहे और बच्चों को सोचने की आदत न डाले, तो वह व्यक्ति को गुलाम बना देती है, स्वतंत्र नहीं।

फ्रेरे कहते हैं कि सच्ची शिक्षा व्यक्ति को अपने अनुभवों पर विचार करने, उनसे सीखने और समाज की संरचना को समझने का माध्यम बनती है। वह सत्ता के उस चरित्र को उजागर करती है जो अपने हित में ज्ञान को नियंत्रित करती है।

सत्ता से सवाल करना: शिक्षा का राजनीतिक पक्ष

फ्रेरे के अनुसार शिक्षा कभी भी तटस्थ नहीं होती। या तो वह शोषण को बनाए रखने में मदद करती है, या वह शोषण के खिलाफ विद्रोह करना सिखाती है। जब छात्र यह सवाल पूछना शुरू करते हैं कि समाज में कुछ लोग विशेषाधिकार प्राप्त क्यों हैं और कुछ लोग वंचित क्यों, तब शिक्षा सचमुच जीवंत हो जाती है।

विशेषाधिकार और आत्मविश्लेषण

शिक्षा हमें यह सोचने को मजबूर करती है कि क्या हम केवल अपने फायदे के लिए पढ़ रहे हैं, या समाज में बदलाव लाने की ज़िम्मेदारी भी उठाने को तैयार हैं। यह हमें अपने विशेषाधिकारों को पहचानने, उन पर सवाल उठाने और ज़रूरतमंदों के लिए आवाज़ उठाने की नैतिकता सिखाती है।

निष्कर्ष: विद्रोह से बदलाव तक

फ्रेरे की शिक्षा-चेतना हमें बताती है कि शिक्षित व्यक्ति वही है जो समाज के मौजूदा ढाँचों को आँख बंद कर के स्वीकार नहीं करता, बल्कि उनमें सुधार की गुंजाइश तलाशता है। वह व्यवस्था से सवाल करता है, अपने अनुभवों को समझता है और बदलाव के लिए संकल्प लेता है।

इसलिए, जब हम स्कूल, कॉलेज, पाठ्यक्रम या शिक्षकों की बात करें, तो यह ज़रूर सोचें कि क्या हम सिर्फ जानकारियाँ दे रहे हैं, या एक ऐसा समाज भी गढ़ रहे हैं जहाँ हर नागरिक जागरूक, संवेदनशील और सवाल पूछने वाला हो।

क्योंकि शिक्षा अगर विद्रोही नहीं है, तो वह केवल प्रशिक्षण है — और प्रशिक्षण से क्रांति नहीं होती।

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