**पाँचवीं अनुसूची (Fifth Schedule)**
**पाँचवीं अनुसूची (Fifth Schedule)** भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो **आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन और उनके अधिकारों की रक्षा** से संबंधित है। इसका उद्देश्य भारत के **मूल निवासी आदिवासी समुदायों (Scheduled Tribes)** को उनकी **भूमि, संसाधनों, संस्कृति और स्वशासन के अधिकारों** की रक्षा प्रदान करना है।
उत्तराखंड के कुछ इलाकों (विशेषकर गढ़वाल और कुमाऊं के सीमांत क्षेत्र और जनजातीय बहुल इलाकों जैसे जौनसार-बावर, भोटिया क्षेत्र, आदि) में भी **ऐसे समुदाय हैं जो सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक रूप से मूल निवासी माने जाते हैं**, लेकिन उन्हें अभी तक 5वीं अनुसूची के तहत **संवैधानिक संरक्षण नहीं मिला है।**
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## 🔹 पाँचवीं अनुसूची क्या है?
**संविधान का अनुच्छेद 244 (Article 244)** कहता है कि अनुसूचित जनजातियों के लिए बनाए गए विशेष क्षेत्रों का प्रशासन पाँचवीं अनुसूची के अनुसार किया जाएगा। यह अनुसूची भारत के **अनुसूचित क्षेत्र (Scheduled Areas)** और उनमें निवास करने वाले जनजातीय समुदायों से संबंधित है।
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## 🔹 5वीं अनुसूची के प्रमुख प्रावधान:
1. **अनुसूचित क्षेत्र (Scheduled Areas) की घोषणा:**
* राष्ट्रपति इन क्षेत्रों को घोषित कर सकता है जहाँ अनुसूचित जनजातियों की आबादी अधिक हो।
2. **गवर्नर की शक्तियाँ:**
* राज्यपाल को अधिकार होता है कि वह ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के लिए नियम बनाए।
* वह राज्य विधानसभा के सामान्य कानूनों को इन क्षेत्रों में आंशिक या पूर्ण रूप से लागू होने से रोक सकता है।
3. **Tribes Advisory Council (TAC):**
* प्रत्येक 5वीं अनुसूची क्षेत्र में एक जनजातीय सलाहकार परिषद होती है, जो सरकार को आदिवासी कल्याण संबंधी मामलों में सलाह देती है।
4. **भूमि की रक्षा:**
* आदिवासी लोगों की भूमि को गैर-आदिवासियों को बेचना, स्थानांतरित करना या हड़पना प्रतिबंधित होता है।
5. **स्थानीय स्वशासन (Self Governance):**
* पंचायत (Extension to Scheduled Areas) Act, 1996 (PESA Act) के तहत जनजातीय क्षेत्रों में ग्राम सभा को शक्तियाँ मिलती हैं।
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## 🔹 उत्तराखंड के संदर्भ में 5वीं अनुसूची क्यों ज़रूरी?
उत्तराखंड में कुछ क्षेत्र जैसे:
* **जौनसार-बावर (देहरादून)**
* **धारचूला, मुनस्यारी (पिथौरागढ़)**
* **जोशीमठ के निकट भोटिया और रणपछी जनजातियाँ**
…इन सबकी सांस्कृतिक पहचान, जीवनशैली, परंपराएं और भूमि-संपत्ति संबंधी व्यवहार **जनजातीय और मूलनिवासी चरित्र** दर्शाते हैं।
लेकिन इन क्षेत्रों को अभी तक संविधान की **पाँचवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है**, जिससे:
* इनकी भूमि और संसाधनों की रक्षा नहीं हो पाती।
* बड़ी परियोजनाओं में इनकी राय के बिना विस्थापन होता है।
* इनकी भाषा-संस्कृति लुप्त हो रही है।
* खनन, टूरिज्म और सड़क निर्माण में आदिवासी हितों की अनदेखी हो रही है।
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## 🔹 अगर उत्तराखंड के मूल निवासी क्षेत्रों को 5वीं अनुसूची में शामिल किया जाए तो लाभ:
| **विषय** | **लाभ** |
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| भूमि अधिकार | आदिवासियों की भूमि की सुरक्षा, गैर-आदिवासी खरीद नहीं सकेंगे |
| संसाधनों पर हक | जंगल, जल, जमीन पर समुदाय आधारित हक |
| स्वशासन | ग्राम सभा को निर्णय लेने की ताकत (PESA कानून) |
| विकास योजनाएँ | उनकी जरूरतों और परंपराओं के अनुरूप योजनाएँ |
| विस्थापन और पुनर्वास | समुदाय की सहमति के बिना कोई प्रोजेक्ट नहीं |
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## 🔹 उत्तराखंड में क्या होना चाहिए?
1. **राज्य सरकार को प्रस्ताव पास करके केंद्र को भेजना चाहिए** कि कुछ क्षेत्र 5वीं अनुसूची में शामिल किए जाएं।
2. **जन आंदोलनों, जनजातीय संगठनों और ग्राम सभाओं** को इस मुद्दे पर एकजुट होकर आवाज उठानी चाहिए।
3. **TAC (Tribal Advisory Council)** की स्थापना होनी चाहिए।
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## 🔹 निष्कर्ष:
**पाँचवीं अनुसूची** सिर्फ एक संवैधानिक व्यवस्था नहीं, बल्कि **एक ढाल है जो आदिवासी और मूल निवासी समुदायों को बाज़ारवाद, विस्थापन और सांस्कृतिक विलोपन** से बचाती है। उत्तराखंड के ऐसे क्षेत्रों में जहाँ मूल निवासी समुदाय रहते हैं, वहाँ 5वीं अनुसूची लागू कराना समय की मांग है।
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