गढ़वाली नाटक: "भोर च अनपढ़"
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विषय: साक्षरता, आत्मसम्मान और ग्रामीण महिला जागरूकता
स्थान: गढ़वाल का एक गांव - मलयालगांव
भाषा: गढ़वाली (मूल भाव स्पष्ट रखने के लिए कुछ संवादों में हिंदी मिश्रण संभव)
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पात्र (Characters)
1. भोरू – नायिका, मेहनती लेकिन अनपढ़ महिला (40 वर्ष)
2. जुनेदी – भोरू की बेटी, स्कूल जाती है (13 वर्ष)
3. गगनु – भोरू का पति, मेहनती मजदूर (45 वर्ष)
4. नीमा टीचर – गांव में आई नवजवान शिक्षिका (28 वर्ष)
5. संगीता – भोरू की सहेली, ग्रामीण महिला
6. प्रधान चाचा – गांव के बुजुर्ग नेता
7. कुछ अन्य ग्रामीण महिलाएं व पुरुष (सहायक पात्र)
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दृश्य 1: घर और खेत का दृश्य
(पृष्ठभूमि में पहाड़, एक छोटी झोपड़ी, खेत की हलचल)
भोरू (कुदाल मारती हुई): ऐ जुनेदी! स्कूल तै देर भै गी, दूध पियेर चल।
जुनेदी (किताब बस्ता उठाते हुए): मम्मी! तू कब पढ़ण सीखुली? सबकी मम्मी फार्म भरदी, तू अंगूठा लगौली।
(भोरू चुप हो जाती है, भावुक चेहरा। नेपथ्य संगीत धीमा बजता है)
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दृश्य 2: राशन की दुकान पर
दुकानदार: भोरू, दस्तखत कर।
भोरू: म्यर अंगूठा चल…
भीड़ हँसती है…
भोरू (मन में): कब तलक यो अपमान सहूं।
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दृश्य 3: गांव में साक्षरता दिवस समारोह
नीमा टीचर (मंच से): पढ़ाई को कोई उमर नई होण। जौं मन में लगन होण, 50 साल मा भी एबीसीडी सीखी सकू।
प्रधान चाचा: मैं भी अंग्रेजी साइन करना शिख्यूं – "देवेंद्र सिंह रावत"…
(सभी लोग हँसते हैं, तालियां बजती हैं)
नीमा: आइजा, राति स्कूल में महिला मंडल की कक्षा लागण। कोई भी आ सकूं।
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दृश्य 4: रात का स्कूल
भोरू, संगीता और 4 महिलाएं चुपचाप नीमा के पास आती हैं।
नीमा: पहला अक्षर – "क" से "किताब"…
भोरू: "क… क… किताब!" (बच्चे जैसे भाव से सीखती है)
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दृश्य 5: बेटी की फीस भरने का दिन
क्लर्क: फॉर्म भरो।
भोरू: (कांपते हाथों से फॉर्म भरती है – नाम, पता, कक्षा) … साईन भी करदी।
जुनेदी (आश्चर्य से): मम्मी! तू… तू पढ़ ली?
भोरू (मुस्कराते हुए): हां बेटी, अब म्यर नाम म्यर हाथ से लिखण लागा।
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अंतिम दृश्य: गांव की बैठक
भोरू (मंच पर):
> "म्यर जीवन मा अंधार रौ, पर अब अक्षर बणि ग्ये दीपक। म्यर नाम अब म्यर शान होण। हमूं पढ़ सकूं, हमूं समझ सकूं। भोर अब अनपढ़ नई रौ।"
(तालियों की गूंज, संगीत – प्रेरणादायक झोड़ा गीत)
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झोड़ा गीत (अंत में)
(सभी मिलकर)
"पढ़ी-लिखी भै गे भोरू, नई अब वो पुरानी छोरी।
अंगूठा नै दस्तखत करै, ज्ञान भै अब रौशनी जोरी।"
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संदेश:
> पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती। साक्षरता सिर्फ ज्ञान नहीं, आत्मसम्मान है। जब महिलाएं पढ़ती हैं, तो समाज रोशनी में आता है।
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