किसी व्यक्ति से उसके जीने का हक और न्यायालय से न्याय मांगने का हक नहीं छिना नहीं जा सकता
यह हमारे भारतीय संविधान के मूल अधिकारों में से एक है। इसे अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 32 के माध्यम से संरक्षित किया गया है।
🔹 अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार:
“किसी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा, जब तक कि विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ऐसा न किया जाए।”
इसका मतलब है कि:
- किसी भी व्यक्ति से उसका जीवन का अधिकार (Right to Life) और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) कानूनी प्रक्रिया के बिना नहीं छीनी जा सकती।
- जीवन का अधिकार केवल जीवित रहने तक सीमित नहीं है, बल्कि सम्मान के साथ जीने का अधिकार भी इसमें शामिल है।
🔹 अनुच्छेद 32 – संवैधानिक उपचारों का अधिकार:
यह अनुच्छेद नागरिकों को सीधे सर्वोच्च न्यायालय का रुख करने का अधिकार देता है यदि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ हो।
इसलिए,
- कोई भी व्यक्ति अगर अन्याय, अत्याचार या मौलिक अधिकारों के हनन का शिकार होता है, तो वह न्यायालय में जाकर न्याय मांग सकता है, और यह हक किसी भी स्थिति में उससे छीना नहीं जा सकता।
सारांश में:
“जीवन और न्याय पाने का अधिकार प्रत्येक नागरिक का जन्मसिद्ध अधिकार है। इसे न कोई सरकार, न कोई संस्था और न कोई व्यक्ति छीन सकता है।”
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