वाल्मीकि थापर: भारत के जंगलों का प्रहरी



वाल्मीकि थापर: भारत के जंगलों का प्रहरी

“जंगलों की आत्मा को समझना सिर्फ विज्ञान नहीं, एक संवेदना है – और वाल्मीकि थापर इसी संवेदना के रक्षक हैं।”

भारत के जंगलों, विशेष रूप से बाघों के लिए, जिन कुछ व्यक्तियों ने अपना जीवन समर्पित कर दिया, उनमें वाल्मीकि थापर का नाम अत्यंत आदर और गर्व से लिया जाता है। वह न केवल एक प्रकृति प्रेमी, लेखक और फोटोग्राफर हैं, बल्कि एक ऐसे योद्धा भी हैं जिन्होंने भारत में वन्यजीव संरक्षण की लड़ाई न केवल सरकारों और संस्थाओं के स्तर पर लड़ी, बल्कि आम जनता के दिलों में भी जंगलों के प्रति चेतना जगाई।


प्रारंभिक जीवन और परिचय

वाल्मीकि थापर का जन्म 1952 में हुआ। वह एक प्रतिष्ठित परिवार से आते हैं और प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर के भतीजे हैं। हालांकि उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत एक सामान्य शिक्षित युवक की तरह की, लेकिन बचपन से ही उन्हें जंगलों और जानवरों से एक खास लगाव था। यह लगाव धीरे-धीरे उनके जीवन का मिशन बन गया।


बाघों के लिए समर्पण

वाल्मीकि थापर विशेष रूप से बाघों के संरक्षण के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने न केवल 'प्रोजेक्ट टाइगर' जैसे अभियानों में महत्वपूर्ण योगदान दिया, बल्कि भारत और विश्व स्तर पर बाघों के रहवास, व्यवहार और संकटों पर गहन अध्ययन प्रस्तुत किया।

उनकी लिखी कई पुस्तकें जैसे —

  • "Land of the Tiger"
  • "Tiger: The Ultimate Guide"
  • "Exotic Aliens: The Lion and the Cheetah in India"
    — न केवल पर्यावरणशास्त्रियों के लिए उपयोगी रही हैं, बल्कि आम पाठकों को भी भारत की जैव-विविधता के प्रति जागरूक बनाने में सफल रही हैं।

वन्यजीव फिल्मों और डॉक्युमेंट्रीज़ का योगदान

वाल्मीकि थापर ने बीबीसी और अन्य अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों के साथ मिलकर कई डॉक्युमेंट्रीज़ और टेलीविजन शृंखलाएं बनाईं, जो भारतीय वन्यजीवों को वैश्विक मंच पर लाने में सफल रहीं। "Land of the Tiger", जो बीबीसी पर प्रसारित हुई, भारत की जैव-विविधता और बाघों के जीवन पर आधारित एक बेहद प्रसिद्ध श्रृंखला रही।


साफ और साहसी आवाज़

थापर को उनकी निडरता के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने सरकारों की उन नीतियों की कड़ी आलोचना की है जो जंगलों और वन्यजीवों को हानि पहुँचाती हैं। वह प्रायः यह कहते आए हैं कि सिर्फ कागजी योजनाओं से संरक्षण संभव नहीं, इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, वैज्ञानिक नीति और जन भागीदारी जरूरी है।


समकालीन चेतना के लिए प्रासंगिकता

आज जब जंगल कट रहे हैं, बाघों की संख्या फिर से खतरे में है, और जलवायु परिवर्तन हमें लगातार चेतावनी दे रहा है — ऐसे समय में वाल्मीकि थापर जैसे व्यक्तित्व हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। वह न केवल एक विशेषज्ञ हैं, बल्कि एक दार्शनिक भी हैं, जो प्रकृति के साथ मनुष्य के रिश्ते को एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने की सलाह देते हैं।


निष्कर्ष

वाल्मीकि थापर का जीवन इस बात का प्रमाण है कि एक व्यक्ति, अपनी लगन और स्पष्ट दृष्टि से, प्रकृति की रक्षा में एक आंदोलन का रूप ले सकता है। आज जब हमें अपने पर्यावरण को बचाने की सबसे बड़ी ज़रूरत है, तब थापर जैसे व्यक्तित्व हमें यह सिखाते हैं कि जंगल केवल जीवों के आवास नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व की जड़ हैं।

"बाघ को बचाना सिर्फ एक प्रजाति को नहीं, पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बचाना है" — यही थापर की सोच है, और यही हमारी जिम्मेदारी भी होनी चाहिए।



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