उत्तराखंड में ग्रामसभाओं की शक्ति का क्षय: लोकतंत्र पर संकट



रिपोर्ट

उत्तराखंड में ग्रामसभाओं की शक्ति का क्षय: लोकतंत्र पर संकट

तैयारकर्ता: Udaen Foundation / जनभागीदारी मंच
तारीख: जून 2025
स्थान: उत्तराखंड


🔷 भूमिका

भारतीय संविधान के 73वें संशोधन और उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम के अनुसार ग्रामसभा लोकतंत्र की मूल इकाई है। लेकिन हाल के वर्षों में उत्तराखंड राज्य में ग्रामसभाओं की ताकत को कमजोर करने की घटनाएं सामने आई हैं, जो स्थानीय स्वराज और जन-सहभागिता के विरुद्ध हैं।


🔷 मुख्य निष्कर्ष

1. ग्रामसभा की सहमति के बिना भूमि अधिग्रहण

  • चारधाम परियोजना, एलिवेटेड रोड (कोटद्वार, ऋषिकेश), जल विद्युत योजनाएं (टिहरी, पिंडर घाटी) आदि में ग्रामसभा की सहमति नहीं ली गई।
  • यह वन अधिकार अधिनियम (FRA) और पर्यावरणीय जन-सहमति प्रक्रिया (EIA) का उल्लंघन है।

2. प्रस्तावों की उपेक्षा

  • कई ग्रामसभाओं द्वारा खनन या शराब की बिक्री के खिलाफ पारित प्रस्तावों को जिलाधिकारी या राज्य सरकार द्वारा अस्वीकार किया गया।

3. वित्तीय अधिकारों की कटौती

  • ग्राम प्रधानों को स्वीकृति के बाद भी ब्लॉक स्तर पर बजट रोका जाता है, जिससे ग्रामसभा की योजना लागू नहीं हो पाती।

4. प्रशासनिक हस्तक्षेप

  • मनरेगा, स्वच्छ भारत मिशन, जल जीवन मिशन आदि योजनाओं में टेंडरिंग और चयन प्रक्रिया पूरी तरह ब्लॉक व ठेकेदारों पर केंद्रित हो गई है।

5. सूचना का अभाव

  • ग्रामसभा की बैठकें सूचना के बिना या बिना कोरम के की जाती हैं।
  • रिकॉर्ड्स पारदर्शी नहीं, आम जनता को जानकारी नहीं मिलती।

🔷 प्रभाव और खतरे

  • जन प्रतिनिधित्व का क्षरण: लोग पंचायतों से विमुख हो रहे हैं, लोकतंत्र खोखला हो रहा है।
  • भ्रष्टाचार में वृद्धि: पंचायत स्तर पर कार्यों का संचालन न होने से पारदर्शिता घटती है।
  • जन असंतोष: भूमि अधिग्रहण और विकास योजनाओं के विरोध में गांवों में आक्रोश बढ़ा है।
  • संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन: 73वां संशोधन, PESA एक्ट, FRA कानून और पंचायती राज अधिनियम की अवहेलना।

🔷 कानूनी और संवैधानिक संदर्भ

  • संविधान अनुच्छेद 243 (b): ग्रामसभा की परिभाषा
  • 73वां संशोधन अधिनियम (1992): पंचायती राज की नींव
  • उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम, 2016
  • PESA (1996): आदिवासी क्षेत्रों में ग्रामसभा की सर्वोच्चता
  • Forest Rights Act (2006): वन क्षेत्र में ग्रामसभा का भूमि पर अधिकार

🔷 सुझाव और मांगें

  1. ग्रामसभा प्रस्तावों को कानूनी बाध्यता दी जाए।
  2. भूमि अधिग्रहण व योजनाओं में अनिवार्य जन-सहमति सुनिश्चित की जाए।
  3. ग्राम पंचायतों को 29 विषयों पर पूर्ण प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार दिए जाएं।
  4. जन-जागरूकता और ग्रामसभा सशक्तिकरण कार्यक्रम शुरू हों।
  5. PIL/RTI के माध्यम से कानूनी हस्तक्षेप हो।

🔷 निष्कर्ष

यदि ग्रामसभा की ताकत को पुनः स्थापित नहीं किया गया, तो यह न केवल ग्रामीण लोकतंत्र के लिए, बल्कि भारत के संविधान की आत्मा के लिए भी खतरा होगा। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में ग्रामसभा ही जन-भागीदारी का सबसे मजबूत मंच है, जिसे बचाना आज की आवश्यकता है।


📎 परिशिष्ट:

  • क्षेत्रीय ग्रामसभा प्रस्तावों की प्रतियां
  • RTI से प्राप्त पंचायत बजट डेटा
  • मीडिया रिपोर्ट्स और केस स्टडी (2021-2025)
  • FRA और PESA कानून की हिंदी व्याख्या


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