उत्तराखंड में ग्रामसभाओं की ताकत कैसे कमज़ोर की जा रही है

 देखा गया है कि उत्तराखंड सरकार (और अन्य राज्यों की सरकारें भी) ग्रामसभाओं की शक्ति को संविधान में वर्णित "लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण" के आदर्शों के विपरीत कमजोर करती आई हैं। यह मुद्दा काफी गंभीर और बहस योग्य है। आइए तथ्यों और उदाहरणों के साथ समझते हैं कि उत्तराखंड में ग्रामसभाओं की ताकत कैसे कमज़ोर की जा रही है:


🔴 1. बिना ग्रामसभा की अनुमति के भूमि अधिग्रहण

  • कई बार जलविद्युत परियोजनाओं, सड़क निर्माण, चारधाम परियोजना, एलिवेटेड रोड, या स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए ग्रामसभा की सहमति के बिना भूमि का अधिग्रहण कर लिया गया है।
  • यह PESA एक्ट और वन अधिकार अधिनियम (FRA) जैसे कानूनों का उल्लंघन है, खासकर आदिवासी और वन क्षेत्रों में।

🔴 2. टॉप-डाउन प्लानिंग (ऊपर से नीचे योजनाएं)

  • ग्राम स्तर पर योजनाएं लोगों की ज़रूरतों के अनुसार नहीं, बल्कि सरकारी मशीनरी द्वारा ऊपर से तय की जाती हैं।
  • मनरेगा जैसी योजनाओं में कामों का चयन अक्सर ब्लॉक या जिला अधिकारियों द्वारा होता है, न कि ग्रामसभा द्वारा।

🔴 3. प्रधानों की शक्तियां सीमित करना

  • ग्राम प्रधानों को कई योजनाओं के लिए अब सीधा बजट या प्रशासनिक नियंत्रण नहीं मिलता। पैसा ब्लॉक या जिला स्तर पर रोक कर रखा जाता है।
  • इससे ग्रामसभा के निर्णय लागू नहीं हो पाते, प्रधान सिर्फ नाम के रह जाते हैं।

🔴 4. ग्रामसभाओं की बैठकों को औपचारिकता बना देना

  • कई गांवों में ग्रामसभा की बैठकें केवल औपचारिक रूप से कागज़ पर होती हैं, न तो सही सूचना दी जाती है, न ही आम जनता को बुलाया जाता है।
  • बैठक में कोई असली निर्णय नहीं लिया जाता, सब कुछ पहले से तय होता है।

🔴 5. स्थानीय आवाजों को नजरअंदाज करना

  • उत्तराखंड के कई हिस्सों में गांववासियों द्वारा विरोध दर्ज करने के बावजूद खनन, सड़क या औद्योगिक परियोजनाएं लागू की गईं (जैसे भट्टा खदान, कालीसौड़ झील, एलिवेटेड रोड, हेमकुंड ropeway आदि)।
  • ग्रामसभा द्वारा पारित प्रस्तावों को सरकार द्वारा दरकिनार कर दिया गया

🔴 6. पंचायती राज संस्थाओं को अधिकार देने में ढिलाई

  • संविधान के 73वें संशोधन के बावजूद उत्तराखंड सरकार ने अभी तक पंचायती राज एक्ट की पूरी भावना से क्रियान्वयन नहीं किया
  • 29 विषयों के विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया अधूरी है — जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, जल संरक्षण, कृषि, आदि।

क्या किया जा सकता है? (जन जागरूकता और प्रतिरोध)

  1. ग्रामसभा प्रस्तावों को दस्तावेज़ी बनाकर हाईकोर्ट या RTI के ज़रिए उठाना।
  2. जन आंदोलन और मीडिया के माध्यम से सरकार पर दबाव बनाना।
  3. PESA और FRA जैसे कानूनों की ट्रेनिंग ग्राम स्तर पर देना।
  4. “ग्राम स्वराज अभियान” जैसी पहल को पुनर्जीवित करना।

✊ एक नारा:

“जो निर्णय ले गांव की सभा, वो ही हो राज्य की नीति, नहीं तो लोकतंत्र है अधूरी कोई रीत।

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