"एक राजनेता मानव जाति को दो भागों में बाँटता है: उपकरण और दुश्मन"



👉 "राजनीति की आँखें इंसान नहीं देखतीं, सिर्फ दो चीजें देखती हैं: उपयोग और विरोध।"

मुख्य टेक्स्ट:
"एक राजनेता मानव जाति को दो भागों में बाँट देता है —
उपकरण और दुश्मन।
जो उसकी सत्ता के काम आते हैं, वे साधन हैं।
जो सवाल उठाते हैं, वे शत्रु।
इस सोच में न जनता बचती है, न लोकतंत्र।
बचता है सिर्फ प्रचार और नियंत्रण।"
#Politics #Power #Democracy #सोचो_मतदान_से_पहले


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🟨 2. डिबेट स्क्रिप्ट (वक्ता आरंभिक कथन):

विषय: क्या आज की राजनीति नागरिकों को केवल उपयोग और विरोध के खांचे में देखती है?

वक्ता (विपक्ष या आलोचक के रूप में):

"मंच पर उपस्थित सभी विद्वानों और श्रोताओं को नमस्कार।
मैं अपनी बात एक कथन से शुरू करना चाहता हूँ —
'एक राजनेता मानव जाति को दो भागों में विभाजित करता है: उपकरण और दुश्मन।'

यह कथन केवल एक व्यंग्य नहीं, आज की सत्ता-नीति का कड़वा सच है।
जो नागरिक उसके प्रचार में भाग लेते हैं, उसके पक्ष में बोलते हैं, वह उन्हें मंच देता है।
और जो तर्क, आलोचना या विकल्प रखते हैं — वे ‘देशद्रोही’, ‘अर्बन नक्सल’ या ‘टूलकिट गैंग’ बन जाते हैं।
क्या यही लोकतंत्र है? या यह सत्ता का अहंकार है जो केवल आज्ञा चाहता है, संवाद नहीं?

आज हमें यह तय करना होगा कि हम सिर्फ उपकरण रहेंगे — या ज़िम्मेदार नागरिक।"


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🟥 3. स्टेज स्क्रिप्ट / नाटक का दृश्य विचार:

दृश्य शीर्षक: "राजनीति का आईना"

स्थान: एक राजा का दरबार (प्रतीकात्मक लोकतंत्र)

चरित्र:

राजनेता (मुख्य पात्र, सत्ता में है)

सचिव (राजनेता का सलाहकार)

जनता (दो हिस्सों में बाँटी गई) – "उपकरण" और "विरोधी"


संवाद अंश:

राजनेता: (मंच पर चलता हुआ)
"मुझे लोग नहीं चाहिए, मुझे भीड़ चाहिए।
मुझे ताली चाहिए, सवाल नहीं।
जो मेरी बात बोले, वह मेरा औज़ार।
जो मेरी बात टाले, वह मेरा दुश्मन।"

सचिव: "जनता तो लोकतंत्र की आत्मा है, महाराज!"

राजनेता: "आत्मा नहीं, यहाँ मुझे चाहिए व्यवस्था – जिसे मैं चला सकूँ, जैसे चाहता हूँ।"

(पर्दा गिरता है, पृष्ठभूमि में आवाज़:)
"जब राजनेता इंसानों को उपकरण समझने लगे, तब लोकतंत्र बस एक मंच बन जाता है — और जनता केवल अभिनय करती है.

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