प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फरवरी 2025 में अमेरिका यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका के बीच व्यापार, रक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग में क्या महत्वपूर्ण प्रगति हुई ,और साथ में क्या कुछ नकारात्मक पहलू और चुनौतियाँ भी रहीं हैं,आइए जानते और करते हैं विश्लेषण।
व्यापार समझौते और आर्थिक सहयोग
प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुई वार्ता में दोनों देशों ने व्यापार और टैरिफ विवादों को हल करने पर सहमति जताई। भारत ने अमेरिकी तेल, गैस और रक्षा उपकरणों के आयात को बढ़ाने का वादा किया, जिससे व्यापार असंतुलन को कम करने में मदद मिलेगी।
इसके अलावा, दोनों देशों ने अवैध प्रवास और मानव तस्करी के मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने का निर्णय लिया। औद्योगिक क्षेत्रों ने इस वार्ता को सकारात्मक रूप से लिया और उम्मीद जताई कि भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार अगले दशक में $500 बिलियन से अधिक हो सकता है। खासतौर पर वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग क्षेत्र को इस समझौते से लाभ होने की संभावना है।
रक्षा साझेदारी
रक्षा क्षेत्र में सहयोग को मजबूत करने के लिए एक नए 10-वर्षीय रक्षा साझेदारी ढांचे की घोषणा की गई। इसमें वायु, थल, जल, अंतरिक्ष और साइबर सुरक्षा के क्षेत्रों में सहयोग को विस्तार देने की योजना है। भारत ने अमेरिकी F-35 स्टेल्थ फाइटर जेट्स के संभावित अधिग्रहण पर भी चर्चा की।
प्रौद्योगिकी सहयोग
प्रधानमंत्री मोदी ने स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क से मुलाकात की, जिसमें अंतरिक्ष, परिवहन और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में संभावित साझेदारी पर चर्चा हुई। एलन मस्क ने भारत में स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट सेवा शुरू करने और टेस्ला के भारतीय बाजार में प्रवेश की संभावनाओं पर भी रुचि जताई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फरवरी 2025 की यहां अमेरिका यात्रा कई महत्वपूर्ण समझौतों और सहयोग को लेकर सफल रही, लेकिन कुछ नकारात्मक पहलू और चुनौतियाँ भी रहीं:
1. व्यापार समझौते में भारत के लिए असमान शर्तें
- अमेरिका ने कुछ भारतीय उत्पादों पर टैरिफ कम करने पर सहमति जताई, लेकिन बदले में भारत को अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए अधिक बाजार खोलने की शर्त माननी पड़ी।
- इससे भारतीय किसानों और छोटे व्यवसायों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि अमेरिकी उत्पाद सस्ते दाम पर भारतीय बाजार में उपलब्ध हो सकते हैं।
2. रक्षा समझौते में भारत की आत्मनिर्भरता को चुनौती
- अमेरिका से उन्नत हथियारों और रक्षा प्रणालियों की खरीद पर जोर दिया गया, जिससे भारत की "मेक इन इंडिया" और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की नीति को झटका लग सकता है।
- भारत को अपने रक्षा सौदों में विविधता बनाए रखने की जरूरत होगी, ताकि वह किसी एक देश पर निर्भर न हो जाए।
3. टेस्ला और स्टारलिंक के संभावित प्रभाव
- एलन मस्क के साथ टेस्ला और स्टारलिंक को लेकर हुई बातचीत से भारतीय ऑटोमोबाइल और टेलीकॉम सेक्टर पर असर पड़ सकता है।
- अगर टेस्ला भारत में आती है और उसे विशेष छूट दी जाती है, तो यह भारतीय ईवी (इलेक्ट्रिक व्हीकल) कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धा को कठिन बना सकता है।
- स्टारलिंक के प्रवेश से स्थानीय इंटरनेट सेवा प्रदाताओं पर असर पड़ सकता है और डेटा सुरक्षा को लेकर चिंताएँ उठ सकती हैं।
4. राजनीतिक आलोचना और संतुलन की चुनौती
- अमेरिका और भारत के बीच बढ़ते रक्षा और व्यापार संबंधों से रूस और चीन जैसे देशों के साथ भारत के कूटनीतिक संतुलन को बनाए रखना मुश्किल हो सकता है।
- भारत ने अब तक रूस के साथ रक्षा संबंधों को बनाए रखा है, लेकिन अमेरिका से बड़े सौदे करने पर रूस की नाराजगी बढ़ सकती है।
5. भारतीय प्रवासियों से जुड़े मुद्दे हल नहीं हुए
- अमेरिका में भारतीय प्रवासियों, खासकर H-1B वीज़ा धारकों की चुनौतियों पर ठोस समाधान नहीं निकला।
- भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स को अमेरिका में ग्रीन कार्ड और वीज़ा प्रक्रिया में तेजी लाने की उम्मीद थी, लेकिन इस पर कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ।
निष्कर्ष
हालांकि यात्रा ने व्यापार, रक्षा और प्रौद्योगिकी में कई सकारात्मक परिणाम दिए, लेकिन भारत को अपनी आर्थिक, रक्षा और कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि ये समझौते देश की दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता और विकास को नुकसान न पहुँचाएँ।
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