अगर अभिव्यक्ति से समझौता किया जाए, उसे दबाया जाए या नियंत्रित किया जाए, तो लोकतंत्र के कोई मायने नहीं हैं,

 बिल्कुल सही! **अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आधारशिला है**। अगर इसे दबाया जाए, नियंत्रित किया जाए, या इससे समझौता किया जाए, तो लोकतंत्र केवल एक दिखावा बनकर रह जाता है।  


लोकतंत्र का सार **स्वतंत्र विचार, बहस, असहमति और आलोचना** में निहित होता है। जब नागरिकों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, या आम जनता को खुलकर बोलने की अनुमति नहीं मिलती, तो सत्ता की जवाबदेही खत्म हो जाती है और लोकतंत्र अधिनायकवाद की ओर बढ़ने लगता है।  


**लोकतांत्रिक व्यवस्था में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन तीन बड़े ख़तरे पैदा करता है:**  

1. **अधिनायकवाद का उदय** – जब सरकार या शक्तिशाली संस्थाएं असहमति को कुचलती हैं, तो वे निरंकुश बन जाती हैं।  

2. **सत्य का दमन** – जब मीडिया और विचारकों की आवाज़ दबाई जाती है, तो जनता तक सही जानकारी नहीं पहुंचती और गलत सूचना का प्रसार बढ़ता है।  

3. **नागरिक अधिकारों का ह्रास** – अगर लोग अपने विचार व्यक्त करने से डरें, तो नागरिक अधिकार धीरे-धीरे खत्म होने लगते हैं।  


इसलिए, **लोकतंत्र की रक्षा के लिए विचारों की स्वतंत्रता, निष्पक्ष मीडिया और असहमति के प्रति सहिष्णुता आवश्यक है।**

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