लोकतंत्र, मीडिया और जनसरोकार के बदलते स्वरूप पर जनचेतना की चिंता और चिंतन



लोकतंत्र, मीडिया और जनसरोकार एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। लोकतंत्र की सफलता इस पर निर्भर करती है कि मीडिया कितना स्वतंत्र, निष्पक्ष और जिम्मेदार है और जनता की भागीदारी कितनी सक्रिय है। आज के दौर में इन तीनों क्षेत्रों में व्यापक बदलाव देखने को मिल रहे हैं, जिन पर चिंतन करना आवश्यक है।


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1. लोकतंत्र का बदलता स्वरूप: प्रतिनिधित्व से भागीदारी तक

लोकतंत्र केवल चुनावों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सतत संवाद और भागीदारी की प्रणाली है। हाल के वर्षों में लोकतंत्र में निम्नलिखित परिवर्तन देखे जा सकते हैं:

(क) डिजिटल लोकतंत्र और जनभागीदारी

सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने जनता को अपनी बात रखने के लिए नए माध्यम दिए हैं।

ई-गवर्नेंस और डिजिटल शिकायत निवारण प्रणालियों ने सरकार और नागरिकों के बीच दूरी कम की है।

हालांकि, ट्रोलिंग, फेक न्यूज़ और डेटा मैनिपुलेशन लोकतांत्रिक संवाद को बाधित कर रहे हैं।


(ख) चुनावी राजनीति और बढ़ता बाज़ारीकरण

राजनीतिक दल अब डेटा-संचालित चुनावी रणनीतियों पर अधिक ध्यान दे रहे हैं, जिससे विचारधारा की जगह प्रचार हावी हो रहा है।

पूंजी का प्रभाव बढ़ने से आम जनता की वास्तविक समस्याएं गौण हो रही हैं।



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2. मीडिया का बदलता स्वरूप: जनसेवा से बाज़ार तक

मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, लेकिन इसकी भूमिका में कई बदलाव आए हैं:

(क) कॉरपोरेट मीडिया और निष्पक्षता का संकट

बड़े कॉरपोरेट घरानों द्वारा मीडिया संस्थानों का अधिग्रहण बढ़ रहा है, जिससे उनकी संपादकीय स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है।

टीआरपी और विज्ञापन के दबाव में खबरों की गुणवत्ता और संतुलन प्रभावित हो रहा है।


(ख) वैकल्पिक मीडिया और डिजिटल पत्रकारिता

स्वतंत्र पत्रकारिता और डिजिटल न्यूज़ प्लेटफ़ॉर्म्स (जैसे The Wire, Scroll, Newslaundry) ने सत्ता की जवाबदेही तय करने का प्रयास किया है।

यूट्यूब, फेसबुक और अन्य डिजिटल माध्यमों ने नागरिक पत्रकारिता (Citizen Journalism) को बढ़ावा दिया है।


(ग) फेक न्यूज़ और सूचना युद्ध

राजनीतिक और व्यावसायिक एजेंडा सेट करने के लिए फेक न्यूज़ और दुष्प्रचार का इस्तेमाल बढ़ा है।

सोशल मीडिया पर सूचनाओं की अधिकता के कारण सत्य और असत्य के बीच भेद करना कठिन हो गया है।



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3. जनसरोकार और सामाजिक चेतना: नई चुनौतियाँ

लोकतंत्र और मीडिया में आए इन बदलावों का सीधा असर जनसरोकारों पर पड़ रहा है।

(क) सामाजिक आंदोलनों की नई दिशा

किसान आंदोलन, पर्यावरणीय संघर्ष, महिलाओं और युवाओं के आंदोलन डिजिटल मीडिया के कारण अधिक प्रभावी हुए हैं।

सत्ता और प्रशासन की जवाबदेही तय करने में इन आंदोलनों ने बड़ी भूमिका निभाई है।


(ख) कार्पोरेट और नीतिगत हस्तक्षेप

प्राकृतिक संसाधनों पर कॉर्पोरेट नियंत्रण और सरकार की नीतियों में उनके प्रभाव ने जनहित को पीछे धकेल दिया है।

जनहित के मुद्दे अक्सर मुख्यधारा मीडिया और नीतिगत चर्चाओं से गायब रहते हैं।



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4. समाधान और आगे की राह

लोकतंत्र, मीडिया और जनसरोकारों की मजबूती के लिए निम्नलिखित कदम उठाने आवश्यक हैं:

1. लोकतांत्रिक सुधार – चुनावी सुधार, जनता की सीधी भागीदारी बढ़ाने के उपाय, और स्थानीय शासन को अधिक सशक्त करना।


2. स्वतंत्र और वैकल्पिक मीडिया का समर्थन – कॉर्पोरेट निर्भरता से मुक्त स्वतंत्र मीडिया और कम्युनिटी जर्नलिज्म को बढ़ावा देना।


3. डिजिटल साक्षरता और फेक न्यूज़ पर नियंत्रण – जनता को डिजिटल मीडिया की समझ विकसित करने और फेक न्यूज़ की पहचान करने की शिक्षा देना।


4. जनसरोकारों को नीति निर्माण में प्राथमिकता – पर्यावरण, रोजगार, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को राजनीतिक एजेंडे में प्रमुख स्थान दिलाना।




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निष्कर्ष

लोकतंत्र, मीडिया और जनसरोकार तीनों परस्पर जुड़े हुए हैं। मीडिया का बाज़ारीकरण, लोकतंत्र में बढ़ता पूंजीवाद, और जनसरोकारों की उपेक्षा एक बड़ी चुनौती बन रही है। लेकिन डिजिटल क्रांति और वैकल्पिक मीडिया ने नई संभावनाओं को जन्म दिया है। आवश्यकता इस बात की है कि जनचेतना को जागरूक किया जाए और लोकतंत्र को केवल चुनावों तक सीमित न रखकर जनभागीदारी का एक मजबूत साधन बनाया जाए।


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