हार न मानूंगा मैं
चलूँगा मैं संग तूफानों के,
अंधेरों से भी टकराऊँगा,
गिरूँगा, फिर संभलूँगा,
पर हार न मैं मानूंगा।
राह कठिन हो पर्वत जैसी,
पथ काँटों से भरा हुआ,
हर दर्द सहूँगा हँसते-हँसते,
अपने हौसले को न मैं झुकाऊँगा।
सपनों की लौ जलती रहेगी,
आँधियाँ चाहे जितनी आएँ,
सूरज बनकर चमकूँगा मैं,
अंधियारे मुझसे हार जाएँ।
संघर्ष मेरा संकल्प बनेगा,
मेहनत मेरी पहचान बनेगी,
हर बाधा को जीतकर मैं,
नई मिसाल बन जाऊँगा।
हार नहीं, जीत ही लिखूंगा,
हर मुश्किल से लड़ जाऊँगा,
गिरूँगा, उठूंगा, आगे बढ़ूंगा,
पर हार न मैं मानूंगा!
@ दिनेश दिनकर
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