लघुचित्र परंपरा (Miniature Painting Tradition) का परिचय
लघुचित्र (Miniature Painting) एक ऐसी चित्रकला परंपरा है जिसमें छोटे आकार में बारीक और जटिल चित्र बनाए जाते हैं। इन चित्रों में प्राकृतिक रंगों और महीन ब्रशवर्क का उपयोग होता है। भारत में यह परंपरा मध्यकाल (9वीं-19वीं शताब्दी) के दौरान फली-फूली।
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🔷 लघुचित्र परंपरा की विशेषताएँ
✅ छोटे आकार – सामान्यतः 5x7 इंच से लेकर 12x16 इंच तक।
✅ प्राकृतिक रंगों का प्रयोग – पत्तियों, पत्थरों, सोने-चाँदी के पाउडर से बने रंग।
✅ बारीक ब्रशवर्क – गिलहरी और गिलहरी के बच्चों के बालों से बने ब्रशों का उपयोग।
✅ धार्मिक और पौराणिक विषय – रामायण, महाभारत, कृष्ण-लीला, शिव-पार्वती आदि।
✅ प्राकृतिक परिदृश्य – पहाड़, नदियाँ, बादल, जंगल, फूल-पत्तियाँ।
✅ स्थानीय संस्कृति का चित्रण – पारंपरिक वस्त्र, आभूषण, रीति-रिवाज।
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🔷 भारत में प्रमुख लघुचित्र परंपराएँ
1️⃣ पश्चिमी भारतीय शैली (9वीं-12वीं शताब्दी)
राजस्थान और गुजरात में विकसित हुई।
जैन ग्रंथों की चित्रकारी में प्रयोग की गई।
मुख्यतः पामलीफ (ताड़पत्र) पांडुलिपियों में चित्र बने।
2️⃣ मुगल लघुचित्र (16वीं-18वीं शताब्दी)
अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ के संरक्षण में विकसित हुई।
ईरानी, तुर्की और भारतीय प्रभाव का मिश्रण।
प्रमुख चित्रकार: मंसूर, बिसनदास, अब्दुस्समद।
3️⃣ राजस्थानी लघुचित्र (17वीं-19वीं शताब्दी)
राजस्थान के विभिन्न राजाओं द्वारा संरक्षित।
प्रमुख शैलियाँ: मेवाड़, मारवाड़, बूँदी, किशनगढ़, जयपुर, जोधपुर।
विषय: कृष्ण-लीला, युद्ध दृश्य, रागमाला चित्रण।
4️⃣ पहाड़ी लघुचित्र (17वीं-19वीं शताब्दी)
हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में विकसित।
प्रमुख शैलियाँ: कांगड़ा, बसोहली, गढ़वाल, चंबा, मंडी।
मोलाराम जैसे कलाकारों ने इसे ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
5️⃣ बंगाल और तंजावुर लघुचित्र (19वीं शताब्दी)
बंगाल शैली में जलरंगों का उपयोग हुआ।
तंजावुर (तमिलनाडु) शैली में सोने और रत्नों की सजावट की गई।
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🔷 गढ़वाल लघुचित्र परंपरा
गढ़वाल लघुचित्र कांगड़ा और बसोहली शैली से प्रेरित थी, लेकिन इसमें गढ़वाली संस्कृति, पहाड़ी परिदृश्य और भक्ति रस को प्रमुखता दी गई।
मोलाराम इस परंपरा के सबसे प्रसिद्ध कलाकार थे।
मुख्य विषय: कृष्ण-राधा, शिव-पार्वती, नंदा देवी यात्रा, गढ़वाली लोक जीवन।
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🔷 वर्तमान में लघुचित्र परंपरा
आज भी राजस्थान, हिमाचल, उत्तराखंड और तंजावुर में यह परंपरा जीवित है।
डिजिटल तकनीकों के साथ कलाकार इस कला को पुनर्जीवित कर रहे हैं।
भारत सरकार और विभिन्न संस्थाएँ इसे संरक्षित करने के लिए कार्य कर रही हैं।
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📌 निष्कर्ष:
लघुचित्र परंपरा भारत की सबसे पुरानी और समृद्ध चित्रकला परंपराओं में से एक है। गढ़वाल, कांगड़ा, राजस्थानी और मुगल शैलियाँ इसकी सबसे प्रमुख धारा रही हैं। यह कला आज भी अपनी सुंदरता और बारीकी के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
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