क्या भारतीय मीडिया फिर से निष्पक्ष बन सकता है, या यह अब पूरी तरह से प्रोपेगेंडा का माध्यम बन चुका है?


भारतीय मीडिया का मौजूदा स्वरूप राजनीतिक और कॉरपोरेट दबाव में आ चुका है। मुख्यधारा के मीडिया हाउसों का बड़ा हिस्सा अब सत्ता या किसी विचारधारा का प्रचार करने का माध्यम बन गया है। हालांकि, क्या यह स्थिति बदली जा सकती है? क्या भारतीय मीडिया फिर से निष्पक्ष हो सकता है? आइए इसे तीन पहलुओं से समझते हैं:


1️⃣ क्या भारतीय मीडिया पूरी तरह से प्रोपेगेंडा का माध्यम बन चुका है?

राजनीतिक दबाव और मीडिया की भूमिका में बदलाव:

  • पहले मीडिया सत्ता के खिलाफ सवाल पूछने वाला स्तंभ था, लेकिन अब मीडिया सरकारों के प्रवक्ता की तरह काम कर रहा है।
  • सरकार और विपक्ष के प्रति दोहरे मापदंड अपनाए जा रहे हैं।
  • मीडिया अब जनता की समस्याओं से ज्यादा राजनीतिक नैरेटिव सेट करने में लगा हुआ है।

कॉरपोरेट और बिजनेस मॉडल का असर:

  • अधिकांश बड़े मीडिया हाउस अब कॉरपोरेट घरानों के स्वामित्व में हैं।
  • इन कॉरपोरेट्स के बिजनेस हित सरकार की नीतियों से जुड़े होते हैं, इसलिए वे मीडिया को सरकार के पक्ष में चलाते हैं।

फेक न्यूज और सोशल मीडिया ट्रेंड्स पर निर्भरता:

  • IT सेल द्वारा राजनीतिक नैरेटिव सेट करने के लिए झूठी खबरें और ट्रेंड चलाए जाते हैं।
  • मुख्यधारा मीडिया इन्हीं ट्रेंड्स को फॉलो कर रिपोर्टिंग करने लगा है।

स्वतंत्र पत्रकारों और आलोचनात्मक मीडिया पर हमले:

  • जो पत्रकार या संस्थान सत्ता से सवाल पूछते हैं, उन्हें देशद्रोही, विपक्ष समर्थक या एजेंडा चलाने वाला करार दिया जाता है।
  • सरकार विरोधी पत्रकारों पर मुकदमे किए जाते हैं, सोशल मीडिया पर उन्हें ट्रोल किया जाता है।

📌 निष्कर्ष:
मुख्यधारा मीडिया का बड़ा हिस्सा अब राजनीतिक प्रचार तंत्र का हिस्सा बन चुका है।
कॉरपोरेट स्वामित्व और सरकार के नियंत्रण में मीडिया की स्वतंत्रता कम होती जा रही है।
फेक न्यूज और सोशल मीडिया प्रोपेगेंडा के चलते मीडिया का भरोसा कम हो रहा है।


2️⃣ क्या भारतीय मीडिया फिर से निष्पक्ष बन सकता है?

(A) स्वतंत्र मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म का बढ़ता प्रभाव

✅ डिजिटल मीडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता के बढ़ते प्रभाव से एक वैकल्पिक मीडिया इकोसिस्टम बन रहा है।
✅ कुछ नए प्लेटफॉर्म जैसे The Wire, The Print, Newslaundry, Alt News, HW News, Scroll आदि सत्ता से सवाल करने वाली पत्रकारिता कर रहे हैं।
✅ YouTube, ब्लॉग्स, पॉडकास्ट जैसे माध्यमों के जरिए कई स्वतंत्र पत्रकार बिना किसी कॉरपोरेट दबाव के रिपोर्टिंग कर रहे हैं।

(B) जनता की जागरूकता और मीडिया पर दबाव

✅ अगर जनता जागरूक हो और सिर्फ एकतरफा खबरों पर भरोसा न करे, तो मीडिया को निष्पक्ष बनना पड़ेगा।
मीडिया को जवाबदेह बनाने के लिए विज्ञापनदाता, TRP और सब्सक्रिप्शन मॉडल पर बदलाव जरूरी है।

(C) मीडिया का आर्थिक मॉडल बदलना होगा

✅ सरकार और कॉरपोरेट विज्ञापनों पर निर्भरता खत्म करनी होगी।
✅ जनता को खुद स्वतंत्र मीडिया को फंड करना होगा, ताकि वे निष्पक्ष रूप से काम कर सकें।

(D) सरकार और मीडिया के संबंधों में पारदर्शिता

✅ मीडिया को सरकारी हस्तक्षेप से बचाने के लिए सख्त नियामक व्यवस्था लागू करनी होगी।
✅ सरकार से जुड़े मीडिया संस्थानों और पत्रकारों की फंडिंग की सार्वजनिक जानकारी होनी चाहिए।

📌 निष्कर्ष:
अगर जनता, स्वतंत्र मीडिया और वैकल्पिक डिजिटल मीडिया मिलकर काम करें, तो भारतीय मीडिया निष्पक्ष हो सकता है।
सरकारी नियंत्रण और कॉरपोरेट दबाव को कम करना ही मीडिया की निष्पक्षता का सबसे बड़ा उपाय है।


3️⃣ निष्कर्ष: क्या भारतीय मीडिया निष्पक्ष हो सकता है या नहीं?

हां, भारतीय मीडिया निष्पक्ष हो सकता है, लेकिन इसके लिए बड़ा बदलाव जरूरी है।
मुख्यधारा मीडिया की निष्पक्षता पर फिलहाल संदेह है, लेकिन डिजिटल मीडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता में उम्मीद बाकी है।
जनता को जागरूक होना होगा, प्रोपेगेंडा मीडिया का बहिष्कार करना होगा और स्वतंत्र पत्रकारिता को सपोर्ट करना होगा।


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