भारत में मूर्ति पूजा (Idol Worship) की शुरुआत

भारत में मूर्ति पूजा (Idol Worship) की शुरुआत वैदिक काल से पहले यानी सिंधु घाटी सभ्यता (3300-1300 BCE) में ही देखी जाती है।

1. सिंधु घाटी सभ्यता (3300-1300 BCE)

खुदाई में मातृ देवी (Mother Goddess), पशुपति (शिव का प्राचीन रूप), लिंग एवं योनि जैसे प्रतीक मिले हैं।

ये संकेत देते हैं कि मूर्ति पूजा का प्रारंभ इस सभ्यता में हो चुका था।


2. वैदिक काल (1500-600 BCE)

प्रारंभिक वैदिक ग्रंथों (ऋग्वेद) में यज्ञ और अग्नि पूजा का अधिक महत्व था, लेकिन देवताओं की मूर्ति स्थापना की परंपरा स्पष्ट नहीं थी।

बाद में उपनिषदों और पुराणों के काल में मूर्ति पूजा को व्यवस्थित रूप में अपनाया गया।


3. महाजनपद काल और बौद्ध-जैन परंपरा (600 BCE - 200 CE)

इस काल में मंदिर निर्माण और देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित होने लगीं।

बौद्ध और जैन धर्म ने भी मूर्ति पूजा को अपनाया, जिससे यह परंपरा और मजबूत हुई।

बौद्ध काल में गौतम बुद्ध की मूर्तियाँ पहली बार बनाई गईं (मथुरा और गांधार शैली)।


4. गुप्त काल और बाद का दौर (300 CE - वर्तमान)

गुप्त काल (4th-6th century CE) में मूर्ति पूजा का स्वर्ण युग आया।

हिंदू धर्म में विष्णु, शिव, देवी, गणेश, कार्तिकेय, कृष्ण आदि की भव्य मूर्तियाँ बनने लगीं।

इस काल में मंदिर निर्माण की परंपरा भी व्यापक रूप से फैली।


निष्कर्ष

भारत में मूर्ति पूजा की जड़ें 5000 साल से भी पुरानी हैं और इसका प्रारंभिक स्वरूप सिंधु घाटी सभ्यता में देखा जा सकता है। वैदिक काल में भले ही यज्ञ प्रमुख थे, लेकिन महाजनपद काल और गुप्त काल तक आते-आते मूर्ति पूजा हिंदू धर्म का अभिन्न अंग बन गई।


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