### **सामाजिक संदर्भ में स्वायत्तता (Autonomy) और पराश्रयता (Heteronomy)**
समाज में स्वायत्तता और पराश्रयता का सीधा संबंध इस बात से है कि लोग अपने निर्णय खुद लेते हैं या बाहरी प्रभावों के कारण चलते हैं। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
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### **1. सामाजिक स्वायत्तता (Social Autonomy)**
जब कोई समाज अपने सांस्कृतिक, आर्थिक, शैक्षिक, और सामाजिक निर्णय **स्वतंत्र रूप से लेता है**, बिना किसी बाहरी दबाव या प्रभाव के, तो उसे सामाजिक स्वायत्तता कहते हैं।
#### **उदाहरण:**
- **महिला मंगल दल और युवा मंगल दल** जैसे संगठन अपने गांवों की समस्याओं का समाधान स्वयं करने का प्रयास करते हैं, तो यह **सामाजिक स्वायत्तता** का उदाहरण है।
- किसी गांव के लोग यदि मिलकर जैविक खेती, सामुदायिक सहकारिता, और पारंपरिक पर्व-त्योहारों को बढ़ावा देने का निर्णय लेते हैं, तो यह **सामाजिक स्वायत्तता** है।
- उत्तराखंड के कई पहाड़ी गांवों में आज भी **पंचायती राज व्यवस्था** मजबूत है, जहां लोग अपने मामलों को बिना सरकारी दखल के खुद हल करते हैं, यह भी स्वायत्तता का उदाहरण है।
#### **लाभ:**
✅ सांस्कृतिक पहचान बनी रहती है।
✅ सामुदायिक सहयोग बढ़ता है।
✅ बाहरी निर्भरता कम होती है, जिससे आत्मनिर्भरता बढ़ती है।
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### **2. सामाजिक पराश्रयता (Social Heteronomy)**
जब कोई समाज अपने निर्णय बाहरी शक्तियों (जैसे सरकार, बड़े कॉर्पोरेट, विदेशी संस्कृति, या मीडिया) के प्रभाव में लेता है, तो वह **पराश्रित** कहलाता है। इसमें समाज अपनी पहचान खो सकता है और बाहरी दबाव के कारण अपनी परंपराओं और मूल्यों को बदलने के लिए मजबूर हो सकता है।
#### **उदाहरण:**
- अगर कोई गांव **बाहरी प्रचार और विज्ञापनों के प्रभाव में आकर पारंपरिक कृषि को छोड़कर केवल व्यावसायिक फसलों पर निर्भर हो जाए**, जिससे उसका आत्मनिर्भरता मॉडल कमजोर हो जाए, तो यह **सामाजिक पराश्रयता** होगी।
- उत्तराखंड जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में अगर लोग बाहरी संस्कृति के प्रभाव में आकर **स्थानीय भाषा (गढ़वाली, कुमाऊंनी) बोलना बंद कर दें**, तो यह भी पराश्रयता है।
- अगर कोई समाज केवल **सरकारी योजनाओं या बाहरी NGO पर निर्भर होकर** अपने निर्णय लेता है, बजाय खुद आत्मनिर्भर बनने के प्रयास करने के, तो यह पराश्रयता का उदाहरण होगा।
#### **हानि:**
❌ सांस्कृतिक विरासत खोने लगती है।
❌ समाज आत्मनिर्भरता छोड़कर बाहरी सहायता पर निर्भर हो जाता है।
❌ बाहरी प्रभावों से सामाजिक मूल्यों और परंपराओं में असंतुलन आ सकता है।
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### **कैसे बढ़ाई जाए सामाजिक स्वायत्तता?**
✅ **स्थानीय निर्णय-making को बढ़ावा दें** – गांव और समुदाय अपनी योजनाएँ खुद बनाएं और लागू करें।
✅ **स्थानीय व्यवसाय और संसाधनों पर ध्यान दें** – पहाड़ी क्षेत्रों में पर्यटन, जैविक कृषि, और पारंपरिक व्यवसायों को बढ़ावा देना।
✅ **शिक्षा और जागरूकता** – बाहरी प्रभावों को समझने और अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने पर जोर देना।
✅ **सामुदायिक भागीदारी** – महिला मंगल दल, युवा मंगल दल, और अन्य स्थानीय संस्थाओं को मजबूत करना।
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### **निष्कर्ष:**
**अगर समाज अपने निर्णय खुद लेता है और अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखता है, तो वह स्वायत्त (Autonomous) है। अगर वह बाहरी ताकतों से प्रभावित होकर अपनी पहचान खोने लगता है और उन पर निर्भर हो जाता है, तो वह पराश्रित (Heteronomous) है।**
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